1 00:00:05,240 --> 00:00:08,840 हमारी दृष्टि क्षमता को हमारे पूर्वजों की कल्पना से कहीं परे ले जाकर चमत्कारी दूरबीनों 2 00:00:08,920 --> 00:00:13,200 ने प्रकृति की गहराई और पूर्णता से समझने 3 00:00:13,280 --> 00:00:17,240 का मार्ग प्रशस्त किया है - रेने डिकार्टीज़, 1637। 4 00:00:17,760 --> 00:00:22,560 लाखों वर्षों से मानव तारक खचित आकाश देख मुग्ध होता रहा 5 00:00:22,640 --> 00:00:28,320 - इस बात से अनजान कि ये तारे सूर्य जैसे हैं और आकाश गंगा मन्दाकिनी के सदस्य हैं 6 00:00:28,400 --> 00:00:33,400 - खरबों दूसरी मन्दाकिनियाँ ब्रह्माण्ड में बिखरी पड़ी हैं 7 00:00:35,440 --> 00:00:38,800 - जिसमें हमारा आस्तित्व 13.7 खरब वर्ष के काल 8 00:00:38,880 --> 00:00:42,520 में मात्र विराम चिह्न से अधिक नहीं। 9 00:00:42,600 --> 00:00:46,080 केवल कोरी आँखों से देखकर अन्य तारों के गिर्द दूसरे सौरमण्डल या 10 00:00:46,160 --> 00:00:50,120 अन्य तारों के गिर्द दूसरे सौरमण्डल या 11 00:00:50,200 --> 00:00:55,000 धरातीत जीवन की खोज नहीं की जा सकती। 12 00:00:58,080 --> 00:01:00,320 आज हम एक विलक्षण युग में जी रहे हैं 13 00:01:00,400 --> 00:01:03,560 जिसमें ब्रह्माण्ड के नित नये रहस्यों पर 14 00:01:03,640 --> 00:01:05,960 से पर्दा उठना शुरु हुआ है। 15 00:01:05,960 --> 00:01:08,960 मैं हूँ डा॰ "जे" और मैं आपको 16 00:01:09,040 --> 00:01:11,880 दूरबीन के बारे में बताऊँगा जो मानव के लिये 17 00:01:11,960 --> 00:01:15,520 ब्रह्माण्ड का प्रवेशद्वार सिद्ध हुई। 18 00:01:17,960 --> 00:01:21,880 "आकाश पर गढ़ी नजरें" दूरबीन के आविष्कार के 400 साल। 19 00:01:22,200 --> 00:01:26,960 1. एक नव आकाश। 20 00:01:28,960 --> 00:01:32,120 चार शताब्दि पहले एक व्यक्ति अपने घर के 21 00:01:32,240 --> 00:01:34,640 निकट मैदान में आया। 22 00:01:34,720 --> 00:01:39,000 उसने स्वनिर्मित दूरबीन ऊपर चन्द्रमा, ग्रहों और तारों पर तानी। 23 00:01:39,080 --> 00:01:42,600 उसका नाम था गैलीलियो गैलिली। 24 00:01:44,040 --> 00:01:47,280 तब से फिर खगोलशास्त्र ने पीछे मुड़कर न देखा। 25 00:02:07,440 --> 00:02:12,400 उस घटना के चार सौ साल बाद आज 26 00:02:12,640 --> 00:02:18,280 खगोलशास्त्री शिखरों पर स्थित वेधशालाओं की दूरबीनों से जिनमें विशाल दर्पण लगे होते हैं आकाश निहारते हैं। 27 00:02:18,360 --> 00:02:23,520 उनकी रेडियो दूरबीनें बाह्य अन्तरिक्ष में जरा सी भी आहट सुनने के लिये सजग रहती हैं। 28 00:02:23,600 --> 00:02:27,680 वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की कक्षा में, वायुमण्डल की 29 00:02:27,760 --> 00:02:31,960 बाधाओं से परे दूरबीनें स्थापित की हैं। 30 00:02:33,440 --> 00:02:38,680 जो देखा उसने मन्त्रमुग्ध किया! 31 00:02:42,960 --> 00:02:46,640 सच ये है गैलीलियो ने दूरबीन का अविष्कार नहीं किया। 32 00:02:46,720 --> 00:02:49,760 इसका श्रेय जाता है हालैण्ड के और जर्मन मूल के 33 00:02:49,840 --> 00:02:53,400 चश्मा बनाने वाले अचर्चित हैन्स लिपरशे को। 34 00:02:53,520 --> 00:02:57,880 पर हैन्स लिपरशे ने कभी अपनी दूरबीन का उपयोग तारों को देखने के लिये नहीं किया 35 00:02:57,960 --> 00:03:00,840 बल्कि उनका ख्याल था कि यह आविष्कार नाविकों और सिपाहियों के काम आयेगा। 36 00:03:00,920 --> 00:03:03,640 नाविकों और सिपाहियों के काम आयेगा। 37 00:03:03,800 --> 00:03:07,240 लिपरशे थे नवोदित डच गणराज्य के मिडेलबर्ग 38 00:03:07,320 --> 00:03:10,440 नामक वाणिज्यिक शहर से। 39 00:03:13,960 --> 00:03:18,040 सन् 1608 में लिपरशे ने देखा कि एक 40 00:03:18,120 --> 00:03:24,000 उन्नत व अवनत ताल (लैन्स) के द्वारा कोई दूर स्थित वस्तु बड़ी 41 00:03:24,080 --> 00:03:29,640 दिखाई देती है बशर्ते इन तालों को परस्पर सही दूरी पर रखा जाय। 42 00:03:29,720 --> 00:03:33,800 यही था दूरबीन का जन्म। 43 00:03:33,880 --> 00:03:37,520 सितंबर 1608 में उन्होने अपने आविष्कार की बात 44 00:03:37,600 --> 00:03:39,880 हाँलैन्ड के राजकुमार मॉरिट्स को बताई। 45 00:03:39,960 --> 00:03:42,840 समय बड़ा उपयुक्त था 46 00:03:42,920 --> 00:03:45,880 क्योंकि तब हालैण्ड, 47 00:03:45,960 --> 00:03:49,320 स्पेन के साथ 80 वर्ष लम्बे युद्ध में उलझा था। 48 00:03:55,320 --> 00:03:59,080 इस खोज जिसे जासूसी शीशा (स्पाईग्लास) कहा जाता था से 49 00:03:59,160 --> 00:04:02,280 बहुत दूर से शत्रु की सेना जहाज़ 50 00:04:02,360 --> 00:04:04,360 आदि दिखाई दे जाते थे। 51 00:04:04,440 --> 00:04:07,440 खोज पर सफलता की मुहर लग गयी। 52 00:04:07,560 --> 00:04:12,000 पर डच सरकार लिपरशे को पेटेण्ट प्रदान न कर सकी - 53 00:04:12,080 --> 00:04:15,400 क्योंकि कुछ अन्य लोग इसका श्रेय ले रहे थे, 54 00:04:15,520 --> 00:04:19,200 विशेषकर लिपरशे का प्रतिद्वन्द्वी - सचारियास जैन्सन। 55 00:04:19,280 --> 00:04:21,520 विवाद कभी सुलझ न पाया। 56 00:04:21,600 --> 00:04:27,920 और आज तक दूरबीन के जन्म की सही कहानी से हम अनजान हैं। 57 00:04:28,920 --> 00:04:32,720 इतालवी खगोलशास्त्री गैलीलियो ने, जिन्हें आधुनिक भौतिकी का जन्मदाता कहा जाता है, 58 00:04:32,800 --> 00:04:37,640 दूरबीन के बारे में सुना और स्वयं अपनी दूरबीन बनाने की ठानी। 59 00:04:38,320 --> 00:04:42,360 करीब दस महीने पहले यह सुनने में आया कि अमुक 60 00:04:42,440 --> 00:04:48,200 फ्लैमिंग ने ऐसा जासूसी चश्मा बना लिया है जिससे 61 00:04:48,280 --> 00:04:52,960 दूर की वस्तुएँ एकदम पास नजर आती हैं। 62 00:04:53,040 --> 00:04:56,120 63 00:04:56,520 --> 00:04:59,440 गैलीलियो अपने समय के महानतम वैज्ञानिक थे। 64 00:04:59,560 --> 00:05:02,600 वो पोलैण्ड के निकोलस कोपरनिकस के प्रबल समर्थक थे 65 00:05:02,680 --> 00:05:06,160 जिसने यह सिद्धांत दिया था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है 66 00:05:06,240 --> 00:05:10,440 न कि सूर्य पृ्थ्वी की। 67 00:05:11,560 --> 00:05:14,240 डच दूरबीन के बारे में जो सुना था उससे 68 00:05:14,320 --> 00:05:16,600 गैलीलियो ने खुद एक दूरबीन बना ली 69 00:05:16,680 --> 00:05:19,160 जो अधिक बेहतर थी। 70 00:05:20,560 --> 00:05:25,320 "अंतत: श्रम और धन की परवाह किये बिना मैंने ऐसी 71 00:05:25,400 --> 00:05:29,680 सुग्राही दूरबीन बना ली है जो कोरी आँखों की तुलना में 72 00:05:29,760 --> 00:05:33,920 वस्तुओं की हजार गुना आवर्धित कर देती है। 73 00:05:33,960 --> 00:05:38,840 74 00:05:39,720 --> 00:05:43,640 यह सही समय था दूरबीन को आकाश पर तानने का। 75 00:05:45,920 --> 00:05:49,680 मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि चाँद की सतह 76 00:05:49,800 --> 00:05:53,520 किसी चिकने गोले जैसी नहीं है जैसा बहुत से दार्शनिक 77 00:05:53,760 --> 00:05:57,440 मानते आ रहे हैं - 78 00:05:57,560 --> 00:06:01,720 बल्कि ऊबड़-खाबड़ है और उसमें 79 00:06:01,800 --> 00:06:06,240 पृथ्वी से बहुत साम्य है। 80 00:06:11,640 --> 00:06:15,320 चाँद पर हैं गड्ढे, पर्वत और घाटियाँ - 81 00:06:15,400 --> 00:06:18,320 हमारे जैसा एक संसार। 82 00:06:19,600 --> 00:06:24,040 कुछ सप्ताह बाद जनवरी 1610 में गैलीलियो ने गुरु को दूरबीन से देखा। 83 00:06:24,120 --> 00:06:28,600 ग्रह से सटे उन्हें चार प्रकाश बिन्दु दिखाई दिये 84 00:06:28,720 --> 00:06:32,960 जो रात-प्रतिरात गुरु के पास ही दिखाई देते और अपना स्थान बदलते रहते। 85 00:06:33,040 --> 00:06:37,920 ऐसा लगा वे प्रकाश बिन्दु हमें ब्रह्माण्ड का कोई नृत्य दिखा रहे हों। 86 00:06:37,960 --> 00:06:40,760 बाद में वे गुरु के चार गैलीलियन उपग्रह कहलाये। 87 00:06:40,840 --> 00:06:43,600 88 00:06:43,720 --> 00:06:46,240 और क्या खोजा गैलीलियो ने? 89 00:06:46,320 --> 00:06:48,400 शुक्र की कलायें। 90 00:06:48,560 --> 00:06:51,920 ठीक हमारे चन्द्रमा की तरह 91 00:06:51,960 --> 00:06:54,200 शुक्र भी कलायें दिखाता है। 92 00:06:54,280 --> 00:06:58,600 शनि ग्रह के दोनों तरफ उन्हें कान जैसी रचना दिखाई दी। 93 00:06:58,720 --> 00:07:01,160 सूर्य के चेहरे पर काले दाग। 94 00:07:01,280 --> 00:07:03,440 और हाँ तारे - वो भी ढेर सारे - 95 00:07:03,560 --> 00:07:06,400 लाखों की संख्या में 96 00:07:06,520 --> 00:07:09,320 जो कोरी आँखों के परे थे। 97 00:07:09,440 --> 00:07:13,920 ऐसा लगा मानो मानव ने अपनी आँखों पर लगी पट्टी एक झटके में निकाल फेंकी हो। 98 00:07:13,960 --> 00:07:18,000 सामने विराट ब्रह्माण्ड पुकार रहा था - आओ मुझे खोजो, जानो। 99 00:07:23,440 --> 00:07:27,760 दूरबीन की खबर पूरे यूरोप में आग की तरह फैल गयी। 100 00:07:27,880 --> 00:07:32,080 प्राग में रुडोल्फ द्वितीय के दरबार में जोहान्स कैप्लर 101 00:07:32,200 --> 00:07:34,800 ने दूरबीन में और सुधार किये। 102 00:07:34,880 --> 00:07:38,840 एण्टवर्प में नक्शा निर्माता माइकेल फॉन लैन्ग्रेन ने 103 00:07:38,960 --> 00:07:41,920 पहली बार चाँद के नक्शे बनाये 104 00:07:41,960 --> 00:07:44,400 और उनमें महाद्वीप और महासागर दरशाये। 105 00:07:44,560 --> 00:07:49,680 और पोलैण्ड में - पेशे से शराब निर्माता - धनी - जोहान्स हैवेलियस ने 106 00:07:49,760 --> 00:07:53,200 डैन्जिग स्थित अपनी वेधशाला में विशाल दूरबीनें लगाईं। 107 00:07:53,280 --> 00:07:57,880 वेधशाला इतनी बड़ी थी कि यह तीन मकानों की छतों पर फैली थी। 108 00:07:59,200 --> 00:08:02,240 पर शायद उस समय के सबसे अच्छे उपकरण 109 00:08:02,320 --> 00:08:05,360 नीदरलैण्डस् में क्रिश्चियन हाइगेन्स ने बनाये थे। 110 00:08:05,440 --> 00:08:11,080 सन 1655 में हाइगेन्स ने शनि के सबसे बड़े उपग्रह टाइटन को खोजा। 111 00:08:11,160 --> 00:08:15,160 कुछ वर्ष बाद उन्होने शनि के वलय पहचान लिये 112 00:08:15,240 --> 00:08:20,320 जिसमें गैलीलियो धोका खा चुके थे। 113 00:08:20,400 --> 00:08:24,640 यही नहीं, हाइगेन्स ने मंगल ग्रह पर 114 00:08:24,720 --> 00:08:27,360 काली रेखाओं और उसकी ध्रुवीय टोपियों को भी पहचाना था। 115 00:08:27,440 --> 00:08:31,080 क्या मंगल के इस संसार में जीवन हो सकता है? 116 00:08:31,160 --> 00:08:35,240 आज भी यह एक प्रश्न ही है। 117 00:08:35,920 --> 00:08:39,520 आरम्भ मे दूरबीनों में प्रकाश इकट्ठा करने का काम ताल (या लैन्स) 118 00:08:39,600 --> 00:08:42,680 द्वारा किया जाता था - ये अपवर्तक थे। 119 00:08:42,760 --> 00:08:45,440 बाद में यह काम दर्पणों द्वारा किया जाने लगा। 120 00:08:45,560 --> 00:08:49,080 प्रथम परावर्तक दूरबीन निकोलो जुच्ची ने बनाई 121 00:08:49,160 --> 00:08:52,000 और बाद में न्यूटन ने उसमें सुधार किये। 122 00:08:52,080 --> 00:08:55,760 फिर 18वीं सदी के अन्त में विलियम हर्शल ने विशाल परावर्तक बनाने आरम्भ किये। 123 00:08:55,840 --> 00:08:59,600 हर्शल वाद्य यंत्र वादक से खगोलशास्त्री बने थे 124 00:08:59,680 --> 00:09:02,520 और अपनी बहिन कैरोलाइन के साथ काम करते थे। 125 00:09:02,600 --> 00:09:06,200 इंगलैण्ड के बाथ नाम शहर के आवास में भाई बहिन गर्म पिंघले शीशे 126 00:09:06,280 --> 00:09:09,880 को साँचो में ढालते, ठण्डा करते, 127 00:09:09,960 --> 00:09:15,440 सतह को चमकाते ताकि वो तारों को परावर्तित कर सके। 128 00:09:15,560 --> 00:09:20,320 इस प्रकार अपने जीवनकाल में उन्होंने 400 से अधिक दूरबीनें बना डाली। 129 00:09:24,520 --> 00:09:28,360 इनमें से जो सबसे विशाल थी उसे घुमाने के लिये उसकी रस्सियाँ, पहिये 130 00:09:28,440 --> 00:09:31,600 और चक्के घुमाने के लिये चार सहायक लगते थे। 131 00:09:31,680 --> 00:09:36,000 पृथ्वी के घूमने के कारण तारे घूम जाते हैं 132 00:09:36,080 --> 00:09:39,440 इसलिये दूरबीन भी घुमानी पड़ती है। 133 00:09:39,560 --> 00:09:43,080 हर्शल एक सर्वेक्षक बन चुके थे, उन्होने आकाश 134 00:09:43,160 --> 00:09:46,720 को खंगाला और सैकड़ों नयी नीहारिकाओं, तारक युग्मों को देखा और दर्ज किया। 135 00:09:46,800 --> 00:09:50,280 उन्होंने ये भी खोज लिया कि आकाशगंगा एक चपटी चकती जैसी होनी चाहिये। 136 00:09:50,360 --> 00:09:54,120 उन्होंने यह भी गणना की कि सौरमण्डल उस चकती में किस गति से घूम रहा है 137 00:09:54,200 --> 00:09:58,840 - तारों और ग्रहों की सापेक्ष गति का अध्ययन कर। 138 00:09:58,920 --> 00:10:06,360 और फिर आई 13 मार्च 1781 की तारीख। उन्होने एक नया ग्रह - यूरेनस खोजा। 139 00:10:06,440 --> 00:10:10,680 इस घटना के 200 साल बाद जाकर नासा के वोयेजर-2 अभियान द्वारा 140 00:10:10,760 --> 00:10:15,880 पहली बार इस ग्रह के समीप से दर्शन हुए। 141 00:10:16,800 --> 00:10:21,240 आयरलैण्ड की हरी-भरी उर्वर भूमि पर 13वीं शताब्दि की सबसे बड़ी दूरबीन बनी - निर्माता - विलियम पार्सन्स 142 00:10:21,320 --> 00:10:26,560 तीसरे "अर्ल आँफ रौस"। दर्पण विशाल था 143 00:10:26,640 --> 00:10:30,560 - 1.8 मीटर व्यास का - 144 00:10:30,640 --> 00:10:35,240 लोग इसे "पार्सन्सटाउन का दैत्य" कहने लगे। 145 00:10:35,320 --> 00:10:39,320 कभी कभार चन्द्रमा विहीन निर्मल रात्रि में अर्ल महाशय 146 00:10:39,440 --> 00:10:44,400 दृष्टि फलक (आयपीस) पर आँख गढ़ा कर चल निकलते महविश्व की यात्रा पर। 147 00:10:45,280 --> 00:10:50,160 वे ओरायन नैब्युला (मृग नीहारिका) पहुँच जाते जिसे आज हम तारों की पौधशाला मानते हैं। 148 00:10:50,280 --> 00:10:55,920 तो कभी कर्क नीहारिका जा पहुँचते जो सुपरनोवा विस्फोट का अवशेष है। 149 00:10:55,960 --> 00:10:57,920 तो कभी भँवररुपी मन्दाकिनी (व्हर्लपूल नैब्युला) देखते। 150 00:10:57,960 --> 00:11:02,560 लॉर्ड रौस वे पहले व्यक्ति थे जिसने इसकी वलयाकार भुजायें पहचानीं। 151 00:11:02,640 --> 00:11:08,400 हमारी आकाशगंगा जैसी ही अन्य मन्दाकिनी, 152 00:11:08,520 --> 00:11:12,400 चमकती गैस, उसमें धूल की काली रेखायें, खरबों तारे - 153 00:11:12,520 --> 00:11:16,560 और शायद कौन जाने पृथ्वियाँ भी हों। 154 00:11:18,920 --> 00:11:24,920 दूरबीन सचमुच ऐसा जहाज़ बन गयी है जिसके सहारे हम ब्रह्माण्ड की यात्रा पर निकल पड़े हैं। 155 00:11:29,720 --> 00:11:34,080 2. जितनी बड़ी उतनी बेहतर 156 00:11:36,080 --> 00:11:38,480 रात में हमारी आँखें अंधेरे की अभ्यस्त हो जाती हैं 157 00:11:38,560 --> 00:11:42,640 - पुतली चौड़ी होकर अधिक प्रकाश का ग्रहण करती है। 158 00:11:42,720 --> 00:11:47,880 इस प्रकार हम धुँधली वस्तुऐं और तारे देख पाते हैं। 159 00:11:47,960 --> 00:11:51,720 कल्पना करें कि आपकी पुतली का व्यास एक मीटर का हो गया है। 160 00:11:51,800 --> 00:11:55,960 आप अजीब दिखाई देंगे पर विलक्षण दृष्टि क्षमता हो जायेगी आपकी। 161 00:11:56,000 --> 00:11:59,400 बस यही काम दूरबीन करती है। 162 00:12:01,880 --> 00:12:04,640 मानो वह एक "कीप" या फनल है। 163 00:12:04,720 --> 00:12:10,240 इसका मुख्य लैन्स या दर्पण प्रकाश को इकट्ठाकर आपकी आँख पर केन्द्रित करता है। 164 00:12:13,080 --> 00:12:17,800 जितना बड़ा यह लैन्स या दर्पण होगा उतना ही अधिक मन्द आप देख पायेंगे। 165 00:12:17,880 --> 00:12:20,720 यानि आकार महान है। 166 00:12:20,800 --> 00:12:23,400 तो फिर कितनी बड़ी दूरबीन हम बना सकते हैं? 167 00:12:23,480 --> 00:12:26,400 यदि अपवर्तक हो तो कुछ ज़्यादा नहीं कर सकते। 168 00:12:29,480 --> 00:12:32,720 प्रकाश इसके लैन्स से गुजरता है। 169 00:12:32,800 --> 00:12:36,080 आप इसे केवल परिधि से पकड़ सकते हैं। 170 00:12:36,160 --> 00:12:41,880 बड़ा बनायें तो यह अपने ही भार से विकृत होने लगता है। 171 00:12:41,960 --> 00:12:45,640 इससे बिम्ब में भी विकृति आती है। 172 00:12:47,400 --> 00:12:54,320 इतिहास में सबसे बड़ी दूरबीन 1897 में पूरी की गयी, इसे शिकागो के बाहर यर्कीज़ आब्ज़र्वेटरी में स्थापित किया गया। 173 00:12:54,400 --> 00:12:57,480 इसका मुख्य ताल एक मीटर जितना था। 174 00:12:57,560 --> 00:13:02,080 पर इसकी नली, अविश्वसनीय, 18 मीटर लम्बी हो गयी थी। 175 00:13:02,160 --> 00:13:08,720 यर्कीज़ दूरबीन के साथ बड़ी अपवर्तक अपने आकार की ऊपरी सीमा छूँ चुकी थी। 176 00:13:08,800 --> 00:13:10,880 यदि बड़ी दूरबीनें चाहिये 177 00:13:10,960 --> 00:13:12,800 तो दर्पण के बारे में सोचें। 178 00:13:17,080 --> 00:13:23,080 एक परावर्तक दूरबीन में प्रकाश दर्पण से टकराकर लौटता है, उसे किसी काँच जैसे माध्यम से नहीं गुजरना पड़ता। 179 00:13:23,160 --> 00:13:29,400 इसका अर्थ है आप लैन्स की तुलना में दर्पण पतले कर सकते हैं और उन्हें पीछे से सहारा भी दे सकते हैं। 180 00:13:29,480 --> 00:13:34,640 परिणामत: लैन्स की तुलना में बहुत विशाल दर्पण बनाना सम्भव है। 181 00:13:35,640 --> 00:13:39,720 एक शताब्दि पहले कैलिफोर्निया में बड़े दर्पणों का पदार्पण हुआ। 182 00:13:39,800 --> 00:13:44,880 तब सैन गैब्रिएल पर्वत श्रृंखला में माउण्ट विल्सन एक अलग-थलग शिखर था। 183 00:13:44,960 --> 00:13:49,080 वहाँ आकाश निर्मल रहता और शहरों से दूर रात्रि अंधकार पूर्ण होती। 184 00:13:49,160 --> 00:13:53,640 यहाँ जार्ज एलेरी हेल ने पहले एक ड़ेढ मीटर व्यास की दूरबीन बनायी। 185 00:13:53,720 --> 00:13:58,400 ये लॉर्ड रौस की सेवानिवृत्त दूरबीन से छोटी किन्तु अधिक गुणवत्ता की थी। 186 00:13:58,480 --> 00:14:02,160 स्थापन स्थल भी बेहतर था। 187 00:14:02,240 --> 00:14:07,640 हेल ने एक स्थानीय व्यापारी जॉन हुकर से ढाई मीटर व्यास की दूरबीन के लिये अर्थदान हासिल किया। 188 00:14:07,720 --> 00:14:12,560 फिर टनों काँच, स्टील की पट्टियाँ माउण्ट विल्सन पर चढाई गयीं, 189 00:14:12,640 --> 00:14:16,000 सन 1917 में हुकर दूरबीन सम्पन्न हुई और 190 00:14:16,080 --> 00:14:20,240 अगले तीस वर्षों तक दुनिया की सबसे बड़ी दूरबीन बनी रही। 191 00:14:20,320 --> 00:14:25,400 मानो ये थी एक विशाल तोप जो ब्रह्माण्ड पर आक्रमण करने को तत्पर थी। 192 00:14:28,480 --> 00:14:31,080 उसने आक्रमण किया भी! 193 00:14:31,160 --> 00:14:34,240 विराट आकार के साथ दूरबीन से देखने, 194 00:14:34,280 --> 00:14:37,240 प्रेक्षण लेने की तकनीक भी बदली। 195 00:14:37,280 --> 00:14:40,800 अब लगातार नेत्रफलक (आईपीस) में ताकना आवश्यक न रह गया था। 196 00:14:40,880 --> 00:14:45,960 प्रकाश को फोटोग्राफिक प्लेट पर घण्टों तक अंकित किया जाने लगा। 197 00:14:46,000 --> 00:14:50,800 आजतक कोई ब्रह्माण्ड में कोई इतनी गहराई तक नहीं पैठ पाया था। 198 00:14:50,880 --> 00:14:55,160 वलयाकार भुजाओं वाली नीहारिकायें तारों के विशाल समुदाय निकले, 199 00:14:55,240 --> 00:14:59,560 शायद उनमें भी हमारी आकाशगंगा की तरह तारे फैले हों। 200 00:14:59,640 --> 00:15:03,800 देवयानी मन्दाकिनी में एडविन हबल ने एक अनोखा तारा पाया 201 00:15:03,880 --> 00:15:07,400 जिसकी चमक चक्रीय क्रम में घटती बढ़ती थी। 202 00:15:07,480 --> 00:15:11,720 हबल के प्रेक्षणों से इस प्रकार देवयानी मन्दाकिनी की दूरी ज्ञात हो गयी 203 00:15:11,800 --> 00:15:15,960 लगभग 10 लाख प्रकाश वर्ष। 204 00:15:16,080 --> 00:15:22,720 देवयानी की ही तरह अन्य वलयाकार नीहारिकायें भी स्वयम में मन्दाकिनियाँ निकल आँयीं। 205 00:15:24,480 --> 00:15:27,320 केवल यही एकमात्र चौंकाने वाली बात हो ऐसा न था। 206 00:15:27,400 --> 00:15:32,000 देखा गया कि ये सब मन्दाकिनियाँ आकाश गंगा से दूर भाग रहीं थीं। 207 00:15:32,080 --> 00:15:37,640 माउण्ट विल्सन से प्रेक्षण लेते हुए हबल ने पाया कि पासवाली कम 208 00:15:37,640 --> 00:15:42,480 और दूरवाली मन्दाकिनियाँ अधिक गति से पलायन कर रही थीं। 209 00:15:42,560 --> 00:15:43,720 निष्कर्ष? 210 00:15:43,800 --> 00:15:46,560 ब्रह्माण्ड फैल रहा था। 211 00:15:46,640 --> 00:15:53,400 इस प्रकार हुकर दूरबीन ने खगोलशास्त्रीयों को बीसवीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण खोज प्रदान की। 212 00:15:56,080 --> 00:16:00,640 इस दूरबीन का धन्यवाद कि हम ब्रह्माण्ड के इतिहास में झाँक सके। 213 00:16:00,720 --> 00:16:04,880 लगभग 14 अरब वर्ष पहले एक दिक्काल, 214 00:16:04,960 --> 00:16:09,240 ऊर्जा एवम् पदार्थ के प्रचण्ड विस्फोट - "बिग बैंग" 215 00:16:09,280 --> 00:16:11,560 द्वारा ब्रह्माण्ड अस्तित्व में आया। 216 00:16:11,640 --> 00:16:17,480 आदि पदार्थ में उठी लघुतरंगें सघन बादल बनने लगीं। 217 00:16:17,560 --> 00:16:20,160 फिर इनसे मन्दाकिनियाँ जन्मीं। 218 00:16:20,240 --> 00:16:23,800 नाना आकार व स्वरुप वाली। 219 00:16:26,560 --> 00:16:30,400 तारों की क्रोड़ में नाभिकीय संलयन द्वारा नये परमाणु बने। 220 00:16:30,480 --> 00:16:34,880 कार्बन, आक्सीजन, लोहा, सोना इत्यादि। 221 00:16:34,960 --> 00:16:39,640 फिर सुपरनोवा विस्फोट द्वारा ये परमाणु वापस अंतरिक्ष में व्याप्त हो गये। 222 00:16:39,720 --> 00:16:43,080 ये थी नये तारों 223 00:16:43,160 --> 00:16:44,800 और ग्रहों की निर्माण सामग्री। 224 00:16:46,880 --> 00:16:54,880 और फिर कहीं, किसी दिन सरल कार्बनिक यौगिक सरल जीवधारियों में तब्दील हो गये। 225 00:16:54,960 --> 00:17:00,560 ब्रह्माण्ड में जीवन की उत्पत्ति एक आश्चर्य से कम नहीं। 226 00:17:00,640 --> 00:17:02,880 हम स्वयम् तारों के अंश हैं। 227 00:17:02,960 --> 00:17:07,000 यह बृहत् परिदृश्य और ये रोचक कहानी 228 00:17:07,080 --> 00:17:11,160 दूरबीनों ने उजागर की है। 229 00:17:11,240 --> 00:17:15,640 यदि दूरबीन न आयी होती तो आज भी हम 230 00:17:15,720 --> 00:17:18,160 केवल 6 ग्रहों, एक चन्द्रमा और कुछ हजार तारों की ही बात कर रहे होते। 231 00:17:18,240 --> 00:17:22,400 आज भी खगोलशास्त्र अपने शैशव में ही होता। 232 00:17:23,640 --> 00:17:27,480 मानो अपने में गढ़े हुये किसी खजाने 233 00:17:27,560 --> 00:17:30,000 की खोज के लिये हमें आमन्त्रित कर रहा हो। 234 00:17:30,080 --> 00:17:35,480 राजकुमारों, सामंतो, राजनेताओं, उद्योगपतियों, वैज्ञानिकों 235 00:17:35,560 --> 00:17:40,240 सभी की अनजान ब्रह्माण्ड को जानने की चाहत रही। 236 00:17:40,280 --> 00:17:45,400 उनके द्वारा प्रदत्त उपकरणों ने हमारे ज्ञान की परिघि को तेजी़ से आगे बढा़या। 237 00:17:59,800 --> 00:18:02,640 जॉर्ज एलरी हेल का एक अन्तिम स्वप्न थाः 238 00:18:02,720 --> 00:18:06,960 पहले से दोगुनी क्षमता की दूरबीन बनाना। 239 00:18:07,000 --> 00:18:10,880 मिलिये बीसवीं सदी की पैलोमर पर्वत शिखर 240 00:18:10,960 --> 00:18:15,880 पर स्थित पाँच मीटर व्यास की हेल दूरबीन से। 241 00:18:15,960 --> 00:18:20,560 पाँच सौ टन से अधिक भारवाली यह दूरबीन 242 00:18:20,640 --> 00:18:24,640 एक बैले नर्तकी सा संतुलन बना थिरकती है। 243 00:18:24,720 --> 00:18:30,240 इसका 40 टन का दर्पण कोरी आँखों की क्षमता से चार करोड़ गुना धुँधले तारे दर्शाता है। 244 00:18:30,280 --> 00:18:35,240 सन 1948 में पूर्ण हुई इस दूरबीन ने हमें ग्रहों, 245 00:18:35,280 --> 00:18:38,800 तारक समूहों, नीहारिकाओं और मन्दाकिनियों के विलक्षण दृष्य दिखाये हैं। 246 00:18:41,080 --> 00:18:44,960 विराट गुरु ग्रह अपने चन्द्रमाओं के साथ। 247 00:18:45,080 --> 00:18:49,080 अद्भुत अग्निशिखा नीहारिका। 248 00:18:49,160 --> 00:18:54,240 मृग नीहारिका में गैस की लटें। 249 00:18:59,880 --> 00:19:02,080 क्या हम और बड़ी दूरबीनें बना सकते हैं? 250 00:19:02,160 --> 00:19:06,240 सन् 1970 में रूसी खगोलशास्त्रियों ने ये कोशिश की थी। 251 00:19:06,280 --> 00:19:10,640 कॉकेशस पर्वत श्रृंखला में एक ऊँचे स्थान में उन्होंने 6 मीटर व्यास वाले दर्पण की 252 00:19:10,720 --> 00:19:14,880 बोलशोई अजीमुताल्न्यी टैलिस्कोप लगाई। 253 00:19:14,960 --> 00:19:17,640 पर यह आशा पर ख़री न उतर सकी। 254 00:19:17,720 --> 00:19:21,720 कारण, यह बहुत बड़ी, बहुत खर्चीली और बहुत कठिन साबित हुई। 255 00:19:21,800 --> 00:19:24,960 क्या ये प्रयास बन्द होने चाहिये? 256 00:19:25,080 --> 00:19:28,480 क्या बड़ी दूरबीनों के स्वप्न सँजोना वृथा है? 257 00:19:28,560 --> 00:19:31,960 क्या बड़ी दूरबीन के निर्माण की कहानी का पटाक्षेप हो गया था? 258 00:19:32,080 --> 00:19:33,400 हरगिज नहीं। 259 00:19:33,480 --> 00:19:36,480 आज विश्व में दस मीटर व्यास की दूरबीनें कार्यरत हैं। 260 00:19:36,560 --> 00:19:39,160 और भी बड़ी दूरबीनों के निर्माण की योजनायें हैं। 261 00:19:39,240 --> 00:19:40,720 कैसे ये सम्भव हुआ? 262 00:19:40,800 --> 00:19:42,640 नयी तकनीकों द्वारा। 263 00:19:44,000 --> 00:19:48,760 3. उद्धार किया तकनीकी ने 264 00:19:48,960 --> 00:19:52,800 ठीक जिस तरह आधुनिक कारें फोर्ड के प्रथम मॉडल से पर्याप्त भिन्न हैं 265 00:19:52,880 --> 00:19:56,280 वैसे ही आधुनिक दूरबीनें अपने पुरातन स्वरुप से अलग नज़र आती हैं। 266 00:19:56,360 --> 00:19:58,680 जैसे पाँच मीटर की हेल दूरबीन। 267 00:19:58,760 --> 00:20:01,880 पहली बात, उन्हें आधार देने वाली प्रणाली छोटी हो गयी है। 268 00:20:01,960 --> 00:20:05,840 पहले की ध्रुवीय शैली में दूरबीन का 269 00:20:05,920 --> 00:20:09,720 एक अक्ष पृथ्वी के घूर्णन अक्ष के समान्तर रखा जाता था। 270 00:20:09,800 --> 00:20:13,480 आकाशीय पिण्डों का अनुसरण करने के लिये 271 00:20:13,560 --> 00:20:18,200 दूरबीन को बस इस अक्ष पर घूमना होता था। 272 00:20:18,280 --> 00:20:21,160 सरल। किन्तु बहुत स्थान घेरती थी। 273 00:20:21,240 --> 00:20:26,040 आधुनिक उन्नतांश-समतलांश आधारित प्रणाली की दूरबीनें बहुत सुगठित होती हैं। 274 00:20:26,080 --> 00:20:30,440 इसमें दूरबीन एक तोप की तरह आरुढ़ रहती है। 275 00:20:30,480 --> 00:20:35,240 क्षैतिज तथा ऊपर - नीचे दो दिशाओं में घूम सकती है। 276 00:20:35,320 --> 00:20:38,640 समस्या आती है आकाश का अनुसरण करने में। 277 00:20:38,720 --> 00:20:44,240 इसके लिये दूरबीन को दोनों अक्षों पर भिन्न गतियों से घूमना पड़ता है। 278 00:20:44,320 --> 00:20:50,720 यह पद्धति ठीक से तब कारगर हुयी जब दूरबीनें कम्प्यूटर- नियंत्रित हो गयीं। 279 00:20:50,800 --> 00:20:52,840 इससे कुल प्रणाली छोटी और सस्ती हो गयी। 280 00:20:52,920 --> 00:20:57,520 इसे छोटे गुम्बद में रखना सम्भव हुआ। 281 00:20:57,600 --> 00:21:00,320 इससे लागत और घट गयी साथ ही बिम्ब की श्रेष्ठता बढ़ी। 282 00:21:00,400 --> 00:21:03,800 उदाहरण के लिये हवाई द्वीप में लगी कैक दूरबीनें। 283 00:21:03,880 --> 00:21:06,600 हाँलांकि दस मीटर व्यास के इसके दर्पण 284 00:21:06,680 --> 00:21:10,440 माउण्ट पैलोमर की हेल दूरबीन से दुगने आकार के हैं 285 00:21:10,520 --> 00:21:13,240 परन्तु ये कहीं छोटे गुम्बदों में समा सके हैं। 286 00:21:15,080 --> 00:21:17,440 दूरबीन के दर्पण में भी सुधार आया है। 287 00:21:17,520 --> 00:21:19,120 पहले वे मोटे और भारी होते थे। 288 00:21:19,200 --> 00:21:21,840 अब पतले और हल्के। 289 00:21:21,920 --> 00:21:26,800 दर्पण को रखने वाले खोल इन घूमती भट्टियों में ढाले जा रहे हैं। 290 00:21:26,880 --> 00:21:30,320 ये 20 सेण्टीमीटर से भी पतले हैं। 291 00:21:30,400 --> 00:21:32,960 एक जटिल आधार प्रणाली विशाल दर्पण को 292 00:21:33,080 --> 00:21:35,200 अपने ही भार से तड़कने से बचाती है। 293 00:21:35,280 --> 00:21:39,120 कम्प्यूटर नियंत्रित पिस्टन, दर्पण 294 00:21:39,200 --> 00:21:40,840 के सही आकार को बनाये रखते हैं। 295 00:21:43,400 --> 00:21:45,520 इस प्रणाली को "एक्टिव आप्टिक्स" कहा जाता है। 296 00:21:45,600 --> 00:21:49,840 इस तरह गुरुत्व, हवा, तापमान से 297 00:21:49,920 --> 00:21:54,560 आने वाली विकृतियों का निराकरण किया जाता है। 298 00:21:54,640 --> 00:21:58,240 पतले दर्पण का वज़न भी कम होता है। 299 00:21:58,320 --> 00:22:01,440 इसका अर्थ है आधार देने वाली प्रणाली भी 300 00:22:01,560 --> 00:22:03,440 छोटी और हल्की होगी। 301 00:22:03,520 --> 00:22:05,560 साथ ही सस्ती भी! 302 00:22:05,640 --> 00:22:08,360 ये है 3.8 मीटर व्यास की नयी तकनीक दूरबीन - 303 00:22:08,440 --> 00:22:11,760 यूरोप में यह 1980 के दशक में बनायी गयी। 304 00:22:11,840 --> 00:22:14,840 ये नयी तकनीकों के परीक्षण 305 00:22:14,920 --> 00:22:16,120 के लिये कसौटी साबित हुई। 306 00:22:16,200 --> 00:22:20,960 इसका यह कक्ष भी पुरानी दूरबीनों के गुम्बदों से भिन्न है। 307 00:22:21,080 --> 00:22:24,240 नयी तकनीक दूरबीन बहुत सफल सिद्ध हुयी। 308 00:22:24,320 --> 00:22:27,280 आइये, 6 मीटर की बाधा पर करें। 309 00:22:27,600 --> 00:22:31,400 प्रशान्त महासागर में 4200 मीटर के सर्वोच्च शिखर पर 310 00:22:31,480 --> 00:22:34,960 ये है मौना कीया वेधशाला। 311 00:22:36,960 --> 00:22:41,120 नीचे हवाई द्वीप के समुद्र तटों पर पर्यटक धूप और लहरों का आनन्द लेते हैं। 312 00:22:41,200 --> 00:22:44,520 पर यहाँ ऊपर कड़क सर्दी और कम वायु दाब की विषम परिस्थिति झेलते हुए 313 00:22:44,600 --> 00:22:51,160 खगोलशास्त्री ब्रह्माण्ड के रहस्यों की खोज में लगे रहते हैं। 314 00:22:51,240 --> 00:22:54,120 कैक दूरबीनें दुनिया की विशालतम दूरबीनों में से हैं। 315 00:22:54,200 --> 00:22:59,120 दस मीटर व्यास के इनके दर्पण पापड़ जैसे पतले हैं। 316 00:22:59,200 --> 00:23:04,040 छत्तीस षट्कोणीय भागों को फर्श पर बिछी टाइलों की भाँति जोड़कर ये बने हैं - 317 00:23:04,120 --> 00:23:07,480 प्रत्येक का नियंत्रण नैनोमीटर की शुद्धता से होता है। 318 00:23:07,560 --> 00:23:11,200 ये महान दूरबीनें आकाश के अध्ययन को समर्पित हैं। 319 00:23:11,280 --> 00:23:14,120 विज्ञान के मन्दिर। 320 00:23:14,200 --> 00:23:16,600 मौना कीया में रात्रि का पदार्पण। 321 00:23:16,680 --> 00:23:21,720 कैक दूरबीनें ब्रह्माण्ड के सुदूर कोनों से आयी प्रकाश रश्मियों का संग्रह आरम्भ कर देती हैं। 322 00:23:21,800 --> 00:23:24,520 दो दूरबीनों के दर्पण संयुक्त रुप से दुनिया की 323 00:23:24,600 --> 00:23:27,440 विशाल दूरबीनों को पिछाड़ देते हैं। 324 00:23:27,520 --> 00:23:30,360 आज रात ये क्या नया खोजेंगी? 325 00:23:34,680 --> 00:23:39,520 शायद अरबों प्रकाश वर्ष दूर परस्पर संघट्ट करती मन्दाकिनियों को? 326 00:23:39,600 --> 00:23:45,320 या किसी मृत्युप्राप्त तारे की अन्तिम उच्छवास - ग्रहरुपी नीहारिका के रुप में? 327 00:23:45,400 --> 00:23:51,040 या फिर कोई धरातीत ग्रह जिसमें जीवन पनप रहा हो? 328 00:23:51,120 --> 00:23:55,920 विश्व के शुष्कतम् स्थल चिली के एटाकामा मरुस्थल 329 00:23:55,960 --> 00:24:00,040 में सैरो पैरानल नामक स्थान में हमें खगोलशास्त्र की सबसे बड़ी मशीन के दर्शन होते हैं। 330 00:24:00,120 --> 00:24:03,560 यूरोप की वैरी लार्ज टैलेस्कोप या वी॰एल॰टी॰। 331 00:24:16,200 --> 00:24:19,520 इस एक दूरबीन में चार दूरबीनें समायी हैं। 332 00:24:19,600 --> 00:24:22,760 प्रत्येक के दर्पण का व्यास 8.2 मीटर। 333 00:24:22,840 --> 00:24:24,120 अंतू। 334 00:24:24,200 --> 00:24:25,240 कुयैन। 335 00:24:25,320 --> 00:24:26,320 मेलीपाल। 336 00:24:26,400 --> 00:24:27,760 येपुन। 337 00:24:27,840 --> 00:24:33,440 ये हैं स्थानीय मापुची सभ्यता में सूर्य, चन्द्र, त्रिशंकु और शुक्र के नाम। 338 00:24:33,520 --> 00:24:37,800 ये विशाल दर्पण जर्मनी में ढले, फ्रांस में इन्हें चमकाकर चिली 339 00:24:37,880 --> 00:24:41,240 के मरुस्थल को धीमी यात्रा पर भेज दिया गया। 340 00:24:41,320 --> 00:24:44,960 रात होती है और दूरबीनों की छतरियां खुल जाती हैं। 341 00:24:45,040 --> 00:24:48,560 तारों के प्रकाश की वृष्टि वी॰एल॰टी॰ के दर्पणों पर होने लगती है। 342 00:24:49,280 --> 00:24:52,080 नई खोजें होती हैं। 343 00:24:55,920 --> 00:24:58,160 एक लेज़र रश्मि रात्रि आकाश को चीरती है। 344 00:24:58,240 --> 00:25:00,680 हमारे सिर के 90 किमी॰ ऊपर 345 00:25:00,760 --> 00:25:03,840 एक कृत्रिम तारे का निर्माण करती है। 346 00:25:03,920 --> 00:25:06,920 दूरबीन के सुग्राही संवेदक यंत्र ये मापते हैं कि 347 00:25:06,960 --> 00:25:09,120 वायुमण्डल की हलचल इस तारे के बिम्ब को कितना विकृत करती है। 348 00:25:09,200 --> 00:25:12,960 तुरंत तेज कम्प्यूटर गणना कर दूरबीन के लचीले दर्पण को 349 00:25:13,040 --> 00:25:15,800 बताते हैं कि कहाँ कितने विकृत हो जाओ कि तारे की विकृति खत्म हो जाय। 350 00:25:15,880 --> 00:25:18,960 इस तरह तारों की टिमटिमाहट समाप्त की जाती है। 351 00:25:19,040 --> 00:25:22,600 ये है "एडैप्टिव आप्टिक्स" नामक 352 00:25:22,680 --> 00:25:24,320 आधुनिक तकनीकी जादू। 353 00:25:24,400 --> 00:25:28,840 बिना इस के ब्रह्माण्ड का परिदृश्य हमें धुँधला और अस्पष्ट नजर आता। 354 00:25:28,920 --> 00:25:32,880 पर इस के कारण अब बिम्ब एकदम स्पष्ट हैं। 355 00:25:35,480 --> 00:25:39,480 एक अन्य आधुनिक जादू है व्यतिकरण का। 356 00:25:39,560 --> 00:25:43,360 इसके द्वारा दो अलग-अलग दूरबीनों के प्रकाश को 357 00:25:43,440 --> 00:25:46,640 एक स्थान पर कुछ इस तरह जोड़ा जाता है 358 00:25:46,720 --> 00:25:49,320 359 00:25:49,400 --> 00:25:53,160 कि वे दो दूरबीनें ऐसा व्यवहार करने लगती हैं 360 00:25:53,240 --> 00:25:56,600 मानो वो एक इतनी विशाल दूरबीन हो 361 00:25:56,680 --> 00:25:59,920 जितना कि उनके बीच की दूरी। 362 00:25:59,960 --> 00:26:04,040 इस तरह ये तकनीक दूरबीन को बाज जैसी पैनी दृष्टि प्रदान करती है। 363 00:26:04,120 --> 00:26:07,600 इसके द्वारा छोटी दूरबीनों से भी इतनी सूक्ष्मता से देखना सम्भव हो पाया है 364 00:26:07,680 --> 00:26:12,440 जो सामान्यतः कोई बहुत बड़ी दूरबीन ही कर सकती है। 365 00:26:12,520 --> 00:26:15,600 मौना कीया पर स्थित दो कैक दूरबीनों को अक्सर इस कार्य के लिये 366 00:26:15,680 --> 00:26:17,520 प्रयुक्त किया जाता है। 367 00:26:17,600 --> 00:26:21,440 वी॰एल॰टी॰ में चारों दूरबीनें इस कार्य में लगायी जाती हैं। 368 00:26:21,520 --> 00:26:24,760 बहुत सी छोटी दूरबीनों का योगदान भी 369 00:26:24,840 --> 00:26:28,880 इसमें जुटाया जाता है। 370 00:26:29,840 --> 00:26:33,400 दुनिया में जगह-जगह विशाल दूरबीनें स्थापित हैं। 371 00:26:33,480 --> 00:26:37,480 मौना कीया में सुबारु और जैमिनी नॉर्थ। 372 00:26:37,560 --> 00:26:42,240 चिली में जेमिनी साउथ और मैजेलन दूरबीनें। 373 00:26:42,320 --> 00:26:46,280 एरिज़ोना में विशाल द्विचक्ष्वी दूरबीन। 374 00:26:48,200 --> 00:26:50,800 इन्हें ऐसे बेहतर स्थानों पर लगाया गया है 375 00:26:50,840 --> 00:26:53,720 जो ऊँचे, शुष्क, निर्मल और अन्धकार वाले हों। 376 00:26:53,840 --> 00:26:56,640 उनकी आँखें किसी तरण-ताल जितनी बड़ी हैं। 377 00:26:56,760 --> 00:27:00,400 इन सब में वो व्यवस्था है कि "एडैप्टिव आप्टिक्स" 378 00:27:00,440 --> 00:27:02,080 वातावरण की झिलमिलाहट को कम करे 379 00:27:02,200 --> 00:27:05,960 और व्यतिकरण वाली पद्धति का उपयोग कर उन्हें 380 00:27:06,040 --> 00:27:08,640 किसी राक्षसी दृष्टि सा पैनापन मिल जाता है। 381 00:27:09,680 --> 00:27:11,800 देखिये, उन्होंने हमें क्या दिखाया है? 382 00:27:11,920 --> 00:27:13,400 ग्रह। 383 00:27:16,600 --> 00:27:18,240 नीहारिकायें। 384 00:27:19,360 --> 00:27:23,960 तारों के वास्तविक स्वरुप। 385 00:27:23,960 --> 00:27:27,160 एक ठण्डा ग्रह भूरे वामन तारे की प्रदक्षिणा कर रहा है। 386 00:27:27,200 --> 00:27:31,480 विशाल तारे आकाशगंगा के केन्द्र का चक्कर लगाते हुए 387 00:27:31,600 --> 00:27:36,720 जिन्हें कोई विराट संहति का श्याम विवर (ब्लेक होल) अपने गुरुत्व से नियंत्रित कर रहा है। 388 00:27:36,840 --> 00:27:40,400 क्यों है न? हम गैलीलियो के युग से बहुत आगे निकल आये हैं। 389 00:27:40,000 --> 00:27:44,760 4. चाँदी से सिलीकॉन तक 390 00:27:45,840 --> 00:27:49,000 400 वर्ष पहले जब गैलीलियो ने दूसरों को वह दिखाना चाहा जो उन्होंने अपनी 391 00:27:49,120 --> 00:27:53,000 दूरबीन से देखा था तो उन्हें रेखाचित्र बनाने पड़े। 392 00:27:53,120 --> 00:27:56,240 गर्तों से पटा चन्द्रमा का मुखमण्डल। 393 00:27:56,360 --> 00:28:00,400 गुरु के चन्द्रमाओं का नृत्य। 394 00:28:00,520 --> 00:28:02,160 सूर्य कलंक। 395 00:28:02,280 --> 00:28:04,160 मृग तारामण्डल के तारे। 396 00:28:04,280 --> 00:28:06,720 उन्होंने अपने रेखाचित्र एक द्दोटी पुस्तक में प्रकाशित किये। 397 00:28:06,760 --> 00:28:08,400 नाम था "स्टारी मैसेन्जर"। 398 00:28:08,440 --> 00:28:10,800 यही एकमात्र तरीका था जिससे वे अपनी खोजों के बारे में 399 00:28:10,920 --> 00:28:12,400 दूसरों को बता सकते थे। 400 00:28:12,440 --> 00:28:16,640 उनके दो शताब्दि बाद तक भी खगोलशास्त्रियों को कलाकार की भूमिका भी निभानी पड़ रही थी। 401 00:28:16,760 --> 00:28:19,000 उन्होंने दूरबीन के नेत्र फलक पर आँख गढ़ाये हुए जो पाया 402 00:28:19,120 --> 00:28:20,960 उसके विस्तृत चित्र अंकित किये। 403 00:28:21,040 --> 00:28:23,080 चन्द्रमा के उजाड़ धरातल के नक्शे। 404 00:28:23,200 --> 00:28:25,960 गुरु के वायुमण्डल के बवंडर। 405 00:28:26,040 --> 00:28:29,000 किसी दूरस्थ नीहारिका में गैस का पतला अवगुंठन। 406 00:28:29,120 --> 00:28:32,320 और कभी-कभी तो जो दिखा उससे कुद्द ज्यादा ही समझ लिया गया। 407 00:28:32,440 --> 00:28:36,560 मंगल की सतह पर मिलने वाली काली रेखाओं को 408 00:28:36,680 --> 00:28:39,880 किसी सभ्यता द्वारा बनाई नहरें समझ लिया। 409 00:28:39,960 --> 00:28:43,480 आज हम जानते है कि ये "नहरें" मात्र दृष्टिभ्रम हैं। 410 00:28:43,600 --> 00:28:47,160 उन्हें चाहिये थी कोई ऐसी व्यवस्था 411 00:28:47,280 --> 00:28:51,480 जो दूरबीन के दृश्य को बिना 412 00:28:51,520 --> 00:28:54,480 उनके अपने दिमाग के इस्तेमाल किये अंकित कर सके। 413 00:28:54,600 --> 00:28:57,400 उद्धार किया फोटोग्रोफी ने। 414 00:28:58,760 --> 00:29:01,160 ये है चन्द्रमा का पहला ऐसा चित्र। 415 00:29:01,200 --> 00:29:03,880 सन् 1840 में हैनरी ड्रेपर ने इसे अंकित किया। 416 00:29:03,920 --> 00:29:07,240 फोटोग्रोफी का आविष्कार होने के मात्र 15 वर्षों के भीतर ही 417 00:29:07,360 --> 00:29:10,880 खगोलशास्त्रियों ने इसे अपना अमोघ अस्त्र बना लिया। 418 00:29:10,920 --> 00:29:13,080 तो फोटोग्रोफी कैसे काम करती है? 419 00:29:13,120 --> 00:29:17,160 फोटोग्रोफी प्लेट पर लगे आलेप में 420 00:29:17,280 --> 00:29:19,400 चाँदी के एक लवण के द्दोटे द्दोटे कण होते हैं। 421 00:29:19,440 --> 00:29:22,160 इन पर प्रकाश पड़े तो वे काले पड़ जाते हैं। 422 00:29:22,200 --> 00:29:24,800 परिणाम था आकाश का एक "निगेटिव" चित्र 423 00:29:24,920 --> 00:29:28,080 जिसमें सफेद पृष्ठभूमि में तारे काले नज़र आते। 424 00:29:28,200 --> 00:29:31,560 पर सबसे बड़ी उपलब्धि थी कि इस प्लेट पर घण्टों तक 425 00:29:31,680 --> 00:29:33,960 लगातार तारों का प्रकाश संग्रह किया जा सकता था। 426 00:29:34,040 --> 00:29:36,720 किसी अंधेरी रात में जब हम आँखों से तारों को देर तक निहारते हैं तो समय 427 00:29:36,760 --> 00:29:39,640 के बीतने के साथ हमें बहुत फीके तारे भी दिखाई 428 00:29:39,680 --> 00:29:42,320 देने लगें ऐसा नहीं होता। 429 00:29:42,440 --> 00:29:45,240 पर फोटोग्रोफिक प्लेट से ये सम्भव हुआ। 430 00:29:45,360 --> 00:29:48,480 आप घण्टों तक उसपर प्रकाश जमा कर सकते हैं। 431 00:29:48,600 --> 00:29:52,880 जितनी देरी तक ऐसा करेंगे उतने अधिक तारे उसमें अंकित होंगे। 432 00:29:52,920 --> 00:29:54,160 और। 433 00:29:54,200 --> 00:29:55,240 और। 434 00:29:55,360 --> 00:29:57,320 थोड़े और। 435 00:29:58,360 --> 00:30:02,000 1950 के दशक में पैलोमर वेधशाला की श्मिड्ट दूरबीन को 436 00:30:02,120 --> 00:30:05,160 पूरे उत्तरी गोलार्ध के तारों को अंकित करने में लगाया गया। 437 00:30:05,280 --> 00:30:10,080 लगभग 2000 फोटोग्राफिक प्लेटें प्रयुक्त हुईं, प्रत्येक में एक-एक घण्टे प्रकाश संग्रहित किया गया। 438 00:30:10,120 --> 00:30:12,960 मानों खोज के भण्डार का द्वार खुल गया था। 439 00:30:12,960 --> 00:30:17,080 फोटोग्रोफिक ने प्रेक्षण आधारित खगोलशास्त्र को एक वास्तविक विज्ञान बना दिया, 440 00:30:17,200 --> 00:30:21,480 वस्तुपरक, मापन योग्य ‌‌और जिसकी दुबारा जाँच की जा सके। 441 00:30:21,600 --> 00:30:23,240 पर चाँदी धीरे धीरे काम करती थी। 442 00:30:23,280 --> 00:30:25,480 वह धैर्य की अपेक्षा करती थी। 443 00:30:27,120 --> 00:30:29,880 पर डिजिटल क्रान्ति ने सब बदल दिया। 444 00:30:29,920 --> 00:30:31,640 चाँदी का स्थान सिलीकॉन ने ले लिया। 445 00:30:31,760 --> 00:30:34,480 कणों के स्थान पर द्दा गये "पिक्सैल"। 446 00:30:36,360 --> 00:30:40,000 आज दैनिक उपयोग के कैमरे से भी फोटोग्राफिक फिल्म जा चुकी है - 447 00:30:40,120 --> 00:30:43,560 आ गयी है द्दोटी सी प्रकाश संवेदी "चिप" - 448 00:30:43,600 --> 00:30:47,800 "चार्ज कपल्ड डिवाइस" या संक्षेप में सी॰सी॰डी॰। 449 00:30:47,920 --> 00:30:51,560 खगोलशास्त्रियों द्वारा प्रयुक्त होने वाली सी॰सी॰डी॰ अत्यन्त निपुण होती है। 450 00:30:51,680 --> 00:30:54,640 उनकी सुग्राहिता बढ़ाने के लिये उन्हें पानी के जमाव बिन्दु से कहीं नीचे 451 00:30:54,680 --> 00:30:57,960 तरल नाइट्रोजन द्वारा प्रशीतित किया जाता है। 452 00:30:58,040 --> 00:31:00,720 इससे लगभग प्रत्येक प्रकाश कण की उपस्थिति दर्ज होती है। 453 00:31:00,760 --> 00:31:05,640 इस कारण देर तक प्रकाश संग्रह आवश्यक नहीं रह गया है। 454 00:31:05,760 --> 00:31:09,480 पैलोमर वेधशाला द्वारा आकाश के सर्वेक्षण का जो कार्य एक घण्टे में हुआ 455 00:31:09,600 --> 00:31:13,160 अब वह एक सी॰सी॰डी॰ द्वारा चन्द मिनटों में 456 00:31:13,200 --> 00:31:15,560 द्दोटी दूरबीन द्वारा किया जा सकता है। 457 00:31:15,600 --> 00:31:18,080 सिलीकॉन क्रान्ति अभी समाप्त नहीं हुयी। 458 00:31:18,200 --> 00:31:21,080 खगोलशास्त्रियों ने ऐसे कैमरे बना लिये हैं 459 00:31:21,200 --> 00:31:23,560 जिनमें करोड़ों "पिक्सैल" हैं। 460 00:31:23,600 --> 00:31:26,320 काम जारी है। 461 00:31:28,120 --> 00:31:32,560 इन डिजिटल चित्रों का सबसे बड़ा लाभ ये है कि 462 00:31:32,600 --> 00:31:35,800 ये तुरंत कम्प्यूटर द्वारा संवर्धन के लिये प्रस्तुत रहते हैं। 463 00:31:35,840 --> 00:31:38,800 इसके लिये खगोलशास्त्री विशेष कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर 464 00:31:38,840 --> 00:31:40,880 का उपयोग करते हैं। 465 00:31:40,880 --> 00:31:45,080 इस चित्र संवर्धन से नीहारिकाओं या मन्दाकिनियों की 466 00:31:45,200 --> 00:31:47,640 फीकी संरचनाये भी उजागर हो जाती हैं। 467 00:31:47,760 --> 00:31:51,240 वर्ण-कूट (कलर कोडिंग) से वे संरचनायें भी सामने आ जाती हैं 468 00:31:51,280 --> 00:31:53,640 जो सामान्यतः नहीं दिखाई देतीं। 469 00:31:53,680 --> 00:31:57,880 फिर एक ही पिण्ड के अलग-अलग 470 00:31:57,920 --> 00:32:00,400 प्रकाश द्दन्नकों से लिये चित्रों को मिलाकर बने चित्र, 471 00:32:00,520 --> 00:32:04,320 कला और विज्ञान के बीच की सीमारेखा 472 00:32:04,440 --> 00:32:06,720 को घूमिल कर देते हैं। 473 00:32:06,840 --> 00:32:09,880 आप भी डिजिटल एस्ट्रोनॉमी का आनन्द ले सकते हैं। 474 00:32:09,960 --> 00:32:13,960 ब्रह्माण्ड के दृश्यों का आनन्द लेना 475 00:32:13,960 --> 00:32:15,800 कितना सरल हो गया है। 476 00:32:15,920 --> 00:32:20,080 बस अपने कम्प्यूटर के "माउस" को खटकाने भर की देर है। 477 00:32:20,680 --> 00:32:24,160 ठीक इसी क्षण सुग्राही उपकरणों से सुसज्जित स्वचालित दूरबीनें 478 00:32:24,280 --> 00:32:27,800 लगातर आकाश की टोह ले रही हैं। 479 00:32:27,920 --> 00:32:30,880 न्यू मैक्सिको में स्थित स्लोन दूरबीन ने अबतक 480 00:32:30,960 --> 00:32:34,000 एक करोड़ से अधिक आकाश पिण्डों के चित्र लिये हैं, 481 00:32:34,120 --> 00:32:38,160 दूरियां ज्ञात की हैं, और उनकी सूची तैयार की है। 482 00:32:38,280 --> 00:32:41,480 उसने लगभग एक लाख नये क्वेज़ार पिंड खोजे हैं। 483 00:32:41,520 --> 00:32:44,000 पर एक सर्वेक्षण प्रर्याप्त नहीं है। 484 00:32:44,120 --> 00:32:47,400 ब्रह्माण्ड परिवर्तनशील है। 485 00:32:47,520 --> 00:32:51,240 बर्फीले धूमकेतु आते हैं, अपना कुद्द पदार्थ कक्षा में 486 00:32:51,280 --> 00:32:53,640 पीद्दे द्दोड़ आगे चले जाते हैं। 487 00:32:53,760 --> 00:32:56,720 उल्कापिण्डों की दौड़भाग चलती रहती है। 488 00:32:56,840 --> 00:33:00,560 कहीं दूर कोई ग्रह अपने तारे के प्रकाश को रोककर 489 00:33:00,680 --> 00:33:02,880 उसे क्षणिक ग्रहण लगाता है। 490 00:33:02,960 --> 00:33:08,800 कहीं सुपरनोवा विस्फोट तो कहीं नवतारों का जन्म होता है। 491 00:33:08,840 --> 00:33:17,960 पल्सार कौँघते हैं, कहीं गामा-किरण विस्फोट होता है तो कहीं ब्लैक होल द्वारा पदार्थ का भक्षण। 492 00:33:18,040 --> 00:33:21,720 प्रकृति के इस अद्भुत विराट नाटक के पल पल बदलते दृश्यों का लेखाजोखा 493 00:33:21,840 --> 00:33:25,240 रखने के लिये खगोलशास्त्री आकाश के नये सर्वेक्षण चाहते हैं। हर वर्ष। 494 00:33:25,360 --> 00:33:26,840 या हर महीने। 495 00:33:26,920 --> 00:33:28,640 या सप्ताह में दो बार। 496 00:33:28,680 --> 00:33:33,800 और इसी उद्देश्य के लिये बन रही है 'लार्ज सिनौप्टिक सर्वे टैलेस्कोप'। 497 00:33:33,920 --> 00:33:39,400 ये 2015 तक तैयार होगी तब मानो 3-गीगापिक्सैल क्षमता 498 00:33:39,440 --> 00:33:42,080 के "वैबकैम" से हम ब्रह्माण्ड को देखेंगे। 499 00:33:42,200 --> 00:33:45,960 खगोलशास्त्रियों के स्वप्न को साकार करने के अतिरिक्त 500 00:33:46,040 --> 00:33:51,080 यह लगभग हर तीन रात्रि में आकाश का एक नया चित्र खींचेगी। 501 00:33:56,000 --> 00:34:00,760 5. दर्शन अदृश्य के। 502 00:34:02,360 --> 00:34:05,080 जब आप अपना प्रिय संगीत सुनते हैं तो 503 00:34:05,160 --> 00:34:08,800 आपके कान मृदंग की कम आवृत्ति से लेकर 504 00:34:08,920 --> 00:34:12,120 तार सप्तक तक को ग्रहण करते हैं। 505 00:34:12,200 --> 00:34:14,960 कल्पना करें कि हमारे कान की संवेदिता 506 00:34:15,360 --> 00:34:16,920 बस थोड़ी ही आवृत्तियों के लिये होती। 507 00:34:16,960 --> 00:34:19,520 बहुत सी अच्छी चीजों से हम वंचित रह जाते। 508 00:34:19,600 --> 00:34:23,000 पर खगोलशास्त्री इसी परिस्थिति में हैं। 509 00:34:23,080 --> 00:34:26,160 हमारी आँखें केवल 510 00:34:26,240 --> 00:34:29,000 दृश्य प्रकाश के लिये संवेदी हैं। 511 00:34:29,080 --> 00:34:31,560 पर वर्णक्रम के शेष बड़े भाग 512 00:34:31,640 --> 00:34:33,600 के प्रति हम अन्धे हैं। 513 00:34:33,680 --> 00:34:36,640 पर ब्रह्माण्ड के बहुतायत पिण्ड इस अदृश्य प्रकाश का 514 00:34:36,720 --> 00:34:39,960 भी उत्सर्जन करते हैं। 515 00:34:40,040 --> 00:34:43,760 उदाहरण स्वरुप 1930 के दशक में संयोग से ये खोज हुई 516 00:34:43,840 --> 00:34:47,240 कि अंतरिक्ष से रेडियो तरंगें आ रही हैं। 517 00:34:47,320 --> 00:34:49,960 इन में से कुछ तरंगों की आवृत्ति आपके प्रिय 518 00:34:50,040 --> 00:34:53,160 रेडियो स्टेशन जितनी, कम शक्तिशाली, 519 00:34:53,240 --> 00:34:55,280 पर संगीतहीन थी। 520 00:34:56,520 --> 00:34:59,960 रेडियो-ब्रह्माण्ड को सुनने के लिये आपको 521 00:35:00,040 --> 00:35:02,560 विशेष उपकरण चाहिये - रेडियो दूरबीन। 522 00:35:02,680 --> 00:35:06,960 लम्बे तरंग दैर्घ्य की तरंगों के सिवाय बाकी सब तरंगों के लिये एक रेडियो दूरबीन बस एक जालीदार डिश है। 523 00:35:07,040 --> 00:35:10,080 जैसे किसी सामान्य दूरबीन का दर्पण। 524 00:35:10,200 --> 00:35:14,400 पर रेडियो तरंगों की लम्बाई सामान्य प्रकाश से बहुत अधिक होती है 525 00:35:14,440 --> 00:35:17,240 इसीलिये डिश की सतह को दर्पण 526 00:35:17,360 --> 00:35:19,000 जैसा सुचिक्कण नहीं बनाना पड़ता। 527 00:35:19,120 --> 00:35:21,640 इसीलिये एक बड़ी रेडियो दूरबीन का निर्माण कार्य 528 00:35:21,680 --> 00:35:26,800 प्रकाश-दूरबीन की तुलना में अपेक्षाकृत सरल है। 529 00:35:26,840 --> 00:35:30,960 रेडियो दूरबीनों द्वारा व्यतिकरण भी बहुत आसानी से किया जाता है। 530 00:35:30,960 --> 00:35:34,080 यानि दो डिशों के संकेतों 531 00:35:34,120 --> 00:35:37,960 को जोड़कर आप 532 00:35:38,040 --> 00:35:41,560 एक विशाल डिश की क्षमता हासिल कर लेते हैं। 533 00:35:41,600 --> 00:35:44,640 न्यू मैक्सिको में स्थापित "वैरी लार्ज एरे" में 534 00:35:44,680 --> 00:35:49,720 25 - 25 मीटर व्यास के 27 डिश एण्टेना हैं। 535 00:35:49,760 --> 00:35:52,960 प्रत्येक डिश अपनी जगह से हटाई जा सकती है। 536 00:35:53,040 --> 00:35:56,400 इसके सबसे विस्तृत संयोजन में यह प्रणाली 537 00:35:56,520 --> 00:36:00,800 35 किमी॰ व्यास जितनी बड़ी दूरबीन सा व्यवहार करती है। 538 00:36:00,920 --> 00:36:03,560 तो रेडियो तरंगों से ब्रह्माण्ड का क्या स्वरुप मिलता है? 539 00:36:03,680 --> 00:36:08,000 हमारा सूर्य रेडियो तरंगों में बहुत चमकीला नज़र आता है। 540 00:36:08,120 --> 00:36:10,720 उसी प्रकार है हमारी मन्दाकिनी का केन्द्र। 541 00:36:10,760 --> 00:36:12,400 पर और भी चीज़ें हैं। 542 00:36:12,520 --> 00:36:16,480 पल्सार नामक पिण्ड - तारों के शव - 543 00:36:16,520 --> 00:36:18,640 एक पतले पुंज में रेडियो तरंगे फेंकते हैं। 544 00:36:18,680 --> 00:36:21,800 वे अपनी धुरी पर अत्यंत तेजी से - 545 00:36:21,840 --> 00:36:23,720 एक सेकिण्ड में सैकड़ों बार तक - घूमते हैं। 546 00:36:23,760 --> 00:36:27,800 एक तरह से ये समुद्र में लगे प्रकाश स्तम्भ सरीखे हैं। 547 00:36:27,920 --> 00:36:31,320 मानो रेडियो लाइट‍‍‍‍‍-‍‍हाउस। 548 00:36:31,360 --> 00:36:34,320 हमें मिलता है तेज़ रेडियो स्पंदन। 549 00:36:34,440 --> 00:36:36,640 इसी लिये यह नाम पड़ा। 550 00:36:36,680 --> 00:36:39,320 शर्मिष्ठा-अ नाम का यह रेडियो स्रोत 551 00:36:39,440 --> 00:36:43,640 एक सुपरनोवा विस्फोट का अवशेष है जो 17वीं सदी में हुआ था। 552 00:36:43,680 --> 00:36:48,240 नरतुरंग‍-अ, हंस-अ, तथा कन्या-अ ये सभी विशाल मन्दाकिनियाँ हैं 553 00:36:48,280 --> 00:36:50,640 जो भारी मात्रा में रेडियो तरंगे उंडेल रही हैं। 554 00:36:50,680 --> 00:36:55,960 प्रत्येक मन्दाकिनी के केन्द्र में स्थित भारी ब्लैकहोल उसे ऊर्जा प्रदान करता है। 555 00:36:56,040 --> 00:37:00,000 इन रेडियो मंदाकिनियों का उत्सर्जन इतना शक्तिशाली है 556 00:37:00,120 --> 00:37:05,320 कि हम 10 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी से भी इसे ग्रहण कर पा रहे हैं। 557 00:37:05,360 --> 00:37:08,880 और दूसरी तरफ है कम तरंग दैर्घ्य का 558 00:37:08,960 --> 00:37:11,320 बहुत कमजोर विकिरण जो पूरे ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। 559 00:37:11,360 --> 00:37:14,160 इसे "कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउण्ड" कहते हैं 560 00:37:14,200 --> 00:37:16,400 जो बिगबैंग संज्ञा वाले आदि विस्फोट की अनुगूँज है। 561 00:37:16,440 --> 00:37:20,560 ब्रह्माण्ड के आग्नेय आदिकाल की ठण्डी पड़ी लपट। 562 00:37:22,120 --> 00:37:26,400 विकिरण के वर्णक्रम का प्रत्येक भाग एक अलग कहानी कहता है। 563 00:37:26,440 --> 00:37:29,960 मिलीमीटर और उससे छोटी तरंगों में 564 00:37:29,960 --> 00:37:33,080 आदि ब्रह्माण्ड में मंदाकिनियों के सृजन तथा 565 00:37:33,200 --> 00:37:37,240 हमारी मंदाकिनी में तारों ग्रहों के उद्भव की झलक मिलती है। 566 00:37:37,280 --> 00:37:41,400 पर इस विकिरण का अधिकांश भाग हमारे वायुमण्डल की वाष्प सोख लेती है। 567 00:37:41,520 --> 00:37:44,400 इसे पाने के लिये थोड़ा ऊपर और शुष्क स्थान पर जाना होगा। 568 00:37:44,440 --> 00:37:47,320 जैसे ल्यानो-डि-चायनेटर। 569 00:37:47,440 --> 00:37:50,960 समुद्र सतह से पाँच किलोमीटर की ऊँचाई पर 570 00:37:50,960 --> 00:37:53,960 उत्तरी चिली के इस अजूबे पठार पर यह 571 00:37:54,040 --> 00:37:56,880 "एल्मा" यानि "एटाकामा लार्ज मिलीमीटर एरे" की निर्माण स्थली है। 572 00:37:56,920 --> 00:38:01,880 सन् 2014 में जब ये पूरी होगी 573 00:38:01,920 --> 00:38:04,320 तो विश्व की सबसे बड़ी वेधशाला होगी। 574 00:38:04,840 --> 00:38:09,960 इस में 100-100 टन के 64 एण्टेना समवेत कार्यरत होंगे। 575 00:38:09,960 --> 00:38:13,880 लन्दन शहर जैसे विशाल क्षेत्र में फैले इन 576 00:38:13,960 --> 00:38:16,800 एण्टेनाओं को विशाल ट्रकों द्वारा इधर उधर खिसकाया जायेगा 577 00:38:16,880 --> 00:38:19,000 ताकि चौड़ा अथवा संकीर्ण दृश्य तैयार किया जा सके। 578 00:38:19,120 --> 00:38:23,240 प्रत्येक खिसकाव मिलीमीटर की परिशुद्धता से किया जायेगा। 579 00:38:24,680 --> 00:38:28,160 ब्रह्माण्ड में बहुत से पिण्ड अवरक्त प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। 580 00:38:28,280 --> 00:38:31,960 विलियम हर्शल द्वारा खोजे अवरक्त प्रकाश या 581 00:38:32,040 --> 00:38:36,720 "इन्फ्रारैड रेडिएशन" का सभी गर्म पिण्डों के साथ 582 00:38:36,760 --> 00:38:39,080 हम मानव भी उत्सर्जन करते हैं। 583 00:38:41,840 --> 00:38:45,240 शायद आप इससे परिचित हों। 584 00:38:45,360 --> 00:38:48,240 आजकल रात में देखने वाले गॉगल्स 585 00:38:48,360 --> 00:38:51,160 तथा कैमरों में यह प्रयुक्त होता है। 586 00:38:51,280 --> 00:38:55,160 परन्तु दूर के पिण्डों से आ रहे अवरक्त प्रकाश को कैद करने के लिये 587 00:38:55,280 --> 00:38:58,960 उपकरण को परम शून्य से बस थोड़ा उपर तक ठंडा करना पडता है 588 00:38:59,040 --> 00:39:04,000 ताकि स्वयम् उपकरण से निकल रहा विकिरण कम हो जाय। 589 00:39:06,920 --> 00:39:11,720 आज की बड़ी दूरबीनों में इसीलिये अवरक्त कैमरे भी लगे होते हैं। 590 00:39:11,760 --> 00:39:15,320 इनसे ब्रह्माण्ड के धूल ले बादलों को भेदकर अन्दर नवजात तारों को खोजा जा सका है, 591 00:39:15,440 --> 00:39:20,240 जो सामान्य दृश्य प्रकाश में सम्भव नहीं है। 592 00:39:20,280 --> 00:39:25,080 उदाहरण स्वरुप मृग नीहारिका की यह प्रसिद्ध तारों की पौधशाला 593 00:39:25,200 --> 00:39:27,400 अवरक्त प्रकाश में कितनी भिन्न लगती है। 594 00:39:27,520 --> 00:39:30,080 595 00:39:30,200 --> 00:39:33,320 अवरक्त प्रकाश को देखने की यह क्षमता दूरस्थित 596 00:39:33,360 --> 00:39:35,960 मंदाकिनियों के अध्ययन में सहायक होती है। 597 00:39:35,960 --> 00:39:41,000 किसी युवा मंदाकिनी के नवजात तारे तीव्र पराबैगनी प्रकाश देते हैं। 598 00:39:41,120 --> 00:39:45,000 पर अरबों प्रकाश की दूरी पार करते 599 00:39:45,120 --> 00:39:46,640 हुए ब्रह्माण्ड का निरंतर प्रसार इसे 600 00:39:46,760 --> 00:39:50,560 हम तक पहुँचते-पहुँचते 601 00:39:50,600 --> 00:39:55,240 अवरक्त बना देता है। 602 00:39:56,600 --> 00:40:00,240 विशिष्ट शैली का यह ला-पाल्मा स्थित मैजिक टैलिस्कोप है। 603 00:40:00,360 --> 00:40:02,960 इसका काम है सबसे तीव्र विकिरण 604 00:40:02,960 --> 00:40:06,800 "गामा किरणों" का पता लगाना। 605 00:40:08,360 --> 00:40:10,960 हमारा वायुमण्डल, सौभाग्य से विनाशकारी 606 00:40:10,960 --> 00:40:12,320 गामा किरणों को अवशोषित कर लेता है। 607 00:40:12,360 --> 00:40:16,000 पर इनकी बची पदचाप खगोलशास्त्रियों द्वारा अध्ययन के लिये पर्याप्त होती है। 608 00:40:16,120 --> 00:40:19,000 वातावरण से टकराने पर ये ऊर्जावान कणों 609 00:40:19,120 --> 00:40:20,640 की वृष्टि पैदा करते हैं जिससे एक हल्की आभा 610 00:40:20,760 --> 00:40:25,320 उत्पन्न होती है जो मैजिक दूरबीन देख लेती है। 611 00:40:26,920 --> 00:40:30,640 ये है अर्जेन्टाइना की पियरे आगर वेधशाला। 612 00:40:30,680 --> 00:40:33,080 ये दूरबीन जैसी बिल्कुल नहीं लगती। 613 00:40:33,120 --> 00:40:38,960 इसमें 3000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 614 00:40:38,960 --> 00:40:40,240 1600 संसूचक (डिटैक्टर) लगे हैं। 615 00:40:40,360 --> 00:40:44,560 ये दूर हो रहे सुपरनोवा व ब्लैकहोल के 616 00:40:44,600 --> 00:40:46,480 विस्फोट से उपजे ओजस्वी कणों की टोह लेते हैं। 617 00:40:47,680 --> 00:40:52,400 और, अन्टार्कटिक की मोटी बरफ के नीचे गहराई में लगे 618 00:40:52,520 --> 00:40:55,720 इन न्यूट्रिनो डिटैक्टर्स को 619 00:40:55,840 --> 00:40:57,880 क्या आप दूरबीन की संज्ञा देंगे? 620 00:40:57,960 --> 00:40:59,400 क्यों नहीं? 621 00:40:59,520 --> 00:41:03,800 आखिर ये भी तो ब्रह्माण्ड को ही 622 00:41:03,840 --> 00:41:06,080 अन्य प्रकार से देख रहे हैं। 623 00:41:06,120 --> 00:41:09,880 न्यूट्रिनो वे दुश्प्राप्य कण हैं जो सूर्य, 624 00:41:09,960 --> 00:41:12,240 तारों और सुपरनोवा विस्फोट में उत्पन्न होते हैं, 625 00:41:12,360 --> 00:41:15,800 ये आदि विस्फोट "बिग बैंग" के समय भी उत्पन्न हुए थे। 626 00:41:15,920 --> 00:41:20,640 अन्य मूलभूत कणों के विपरीत ये आवेशहीन कण पदार्थ से होकर लगभग 627 00:41:20,680 --> 00:41:25,640 प्रकाश की गति से गुजर जाते हैं। 628 00:41:25,760 --> 00:41:30,240 इसलिये इन्हे पकड़ पाना और अध्ययन करना कठिन है। पर ये हैं बहुतायत में। 629 00:41:30,280 --> 00:41:34,160 प्रति सेकिण्ड सूर्य से निकले खरबों 630 00:41:34,200 --> 00:41:36,560 न्यूट्रिनो हमारे शरीर से होकर गु़ज़रते हैं। 631 00:41:36,680 --> 00:41:40,800 और उधर खगोलशास्त्रियों और भौतिकीविदों के संयुक्त प्रयास से 632 00:41:40,920 --> 00:41:42,640 गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों के संसूचक बनने लगे हैं। 633 00:41:42,680 --> 00:41:46,640 ये "दूरबीनें" न तो किसी प्रकाश और न कण का प्रेक्षण लेती हैं। 634 00:41:46,680 --> 00:41:51,240 बल्कि ये उन हल्की लहरों या कंपनों को टोहने का प्रयास करती हैं 635 00:41:51,280 --> 00:41:56,960 जो आइन्सटाइन के सापेक्षता के सिद्धान्त अनुसार दिक्काल में होते हैं। 636 00:41:57,040 --> 00:42:01,160 विविध उपकरणों की सहायता से खगोलशास्त्रियों ने न केवल पूरे 637 00:42:01,200 --> 00:42:06,960 विद्युद्चुम्बकीय वर्णक्रम बल्कि उसके भी परे गवेषणा के द्वार खोले हैं। 638 00:42:07,040 --> 00:42:11,240 पर कुछ प्रेक्षण ऐसे हैं जो यहाँ धरा पर बैठे नहीं किये जा सकते। 639 00:42:11,280 --> 00:42:12,800 इसका उत्तर? 640 00:42:12,920 --> 00:42:15,240 अन्तरिक्ष दूरबीनें। 641 00:42:22,000 --> 00:42:26,560 6. धरती के परे 642 00:42:28,560 --> 00:42:30,400 हबल अंतरिक्ष दूरबीन। 643 00:42:30,480 --> 00:42:33,360 अबतक की सबसे प्रसिद्ध अंतरिक्ष दूरबीन। 644 00:42:33,440 --> 00:42:34,800 और हो भी क्यों न? 645 00:42:34,880 --> 00:42:38,560 हबल ने खगोलशास्त्र की विभिन्न शाखाओं में क्रान्ति पैदा कर दी है। 646 00:42:38,640 --> 00:42:42,040 आधुनिक मानकों में हबल का दर्पण द्दोटा आँका जायेगा- 647 00:42:42,120 --> 00:42:45,040 मात्र 2.4 मीटर व्यास। 648 00:42:45,120 --> 00:42:48,640 पर इसकी स्थापना स्थली सचमुच धरातीत है। 649 00:42:48,720 --> 00:42:52,360 हमारे वातावरण की झिलमिलाहट से कहीं ऊपर से ये 650 00:42:52,440 --> 00:42:54,600 ब्रह्माण्ड को अत्यन्त स्पष्ट और प्रखर स्वरुप में देखती है। 651 00:42:54,680 --> 00:42:59,360 यही नहीं यह पराबैंगनी और अवरक्त प्रकाश को भी देखती है। 652 00:42:59,440 --> 00:43:02,480 इस प्रकाश को धरती पर स्थित दूरबीनें नहीं देख पातीं 653 00:43:02,560 --> 00:43:05,880 क्योंकि वायुमण्डल इसे अवशोषित कर लेता है। 654 00:43:05,960 --> 00:43:09,880 इसमें लगे विशाल कैमरे ‌और वर्णक्रमापी सुदूर ब्रह्माण्ड से आ रहे 655 00:43:09,960 --> 00:43:14,600 विकिरण की पूरी द्दानबीन करते हैं। 656 00:43:14,680 --> 00:43:19,320 किसी भूस्थित दूरबीन की ही भाँति इसकी भी बार-बार मरम्मत करनी पड़ती है। 657 00:43:19,400 --> 00:43:22,760 ये काम करते हैं अंतरिक्ष में तैरते एस्ट्रोनॉट। 658 00:43:22,840 --> 00:43:24,440 पुराने पड़ गये भाग बदले जाते हैं। 659 00:43:24,520 --> 00:43:27,000 कई बार नयी तकनीक से विकसित उपकरण 660 00:43:27,080 --> 00:43:29,800 पुरानों का स्थान लेते हैं। 661 00:43:29,880 --> 00:43:33,280 हबल खगोलशास्त्र का विजयरथ बन गयी। 662 00:43:33,360 --> 00:43:37,240 इसने ब्रह्माण्ड के बारे में हमारी सोच बदल दी। 663 00:43:39,840 --> 00:43:44,800 अपनी दिव्यदृष्टि से इसने मंगल पर ऋतु परिवर्तन 664 00:43:45,920 --> 00:43:48,800 तथा गुरु पर धूमकेतु की बमबारी देखी। 665 00:43:50,520 --> 00:43:53,880 शनि के वलयों की धार देखी 666 00:43:56,920 --> 00:44:00,400 और द्दोटे से प्लूटो की सतह भी। 667 00:44:00,480 --> 00:44:06,320 इसने तारों के जीवन चक्र को नवजात तारे के धूलयुक्त बादल में जन्म से 668 00:44:06,600 --> 00:44:12,560 लेकर भावभीनी विदाई के इस क्षण तक दिखाया। 669 00:44:12,640 --> 00:44:17,800 कोमल नीहारिका, मानों मृत्युप्राप्त तारे की अन्तिम श्वास 670 00:44:17,920 --> 00:44:24,960 या भीषण सुपरनोवा विस्फोट जिसके सामने समूची मन्दाकिनी फी़की नज़र आती है। 671 00:44:25,040 --> 00:44:28,960 मृग नीहारिका के गहन गर्भ में हबल ने नव सौर मण्डलों को बनते देखा - 672 00:44:29,040 --> 00:44:34,080 नव तारों के गिर्द बनी धूलभरी चकती जो शीघ्र 673 00:44:34,120 --> 00:44:36,080 ग्रहों में परिवर्तित हो जायेगी। 674 00:44:36,200 --> 00:44:40,320 हबल ने तारों के अंगूरी गुच्द्दों में विभिन्न हजारों तारों का अध्ययन किया। 675 00:44:40,440 --> 00:44:45,960 ये गुच्द्दे ब्रह्माण्ड की अत्यन्त प्रौढ़ पीढी हैं। 676 00:44:46,040 --> 00:44:48,320 मन्दाकिनीयाँ भी। 677 00:44:48,440 --> 00:44:51,960 इससे पहले इतना विषद स्वरुप न देखा गया था। 678 00:44:51,960 --> 00:44:58,800 वलयाकार भुजाओं वाली मन्दाकिनियाँ, उनमें धूल के गलियारे, प्रचण्ड टक्कर। 679 00:45:01,040 --> 00:45:05,480 जब आकाश के अंधियारे भाग के लम्बे अभिमुख काल के चित्र लिये गये 680 00:45:05,520 --> 00:45:10,080 तो उनमें कम कान्ति की हजारों मन्दाकिनीयाँ मिलीं हमसे अरबोँ प्रकाश वर्ष दूर स्थित। 681 00:45:10,120 --> 00:45:13,960 उसने प्रकाश किरणें तब निकली थीं जब ब्रह्माण्ड शैशव में था। 682 00:45:14,040 --> 00:45:18,400 यह एक ऐसी जादुई खिड़की है जो हमें अतीत ‌और वर्तमान के 683 00:45:18,440 --> 00:45:21,560 परिवर्तनशील ब्रह्माण्ड दोनों को दिखाती है। 684 00:45:22,200 --> 00:45:24,880 हबल एकमात्र अंतरिक्ष दूरबीन नहीं है। 685 00:45:24,920 --> 00:45:29,800 वर्ष 2003 में नासा ने स्पिट्ज़र स्पेस टैलिस्कोप स्थापित की। 686 00:45:29,920 --> 00:45:33,720 यह हबल जैसा ही काम अवरक्त प्रकाश में करती है। 687 00:45:33,760 --> 00:45:37,960 स्पिट्ज़र का दर्पण व्यास में मात्र 85 सेण्टीमीटर व्यास का है। 688 00:45:37,960 --> 00:45:41,080 दूरबीन को सूर्य की गरमी से बचाने के 689 00:45:41,200 --> 00:45:42,480 लिये एक कवच लगाया गया है। 690 00:45:42,520 --> 00:45:47,160 इसके संवेदी उपकरण एक द्ववीभूत हीलियम के पात्र में 691 00:45:47,200 --> 00:45:50,080 परम शून्य से बस थोड़ा ऊपर के तापमान 692 00:45:50,200 --> 00:45:51,800 पर ठण्डे रखे जाते हैं। 693 00:45:51,920 --> 00:45:55,560 इससे ये प्रबल संवेदी बन जाते हैं। 694 00:45:55,680 --> 00:45:58,720 स्पिट्ज़र ने हमारा धूलभरे ब्रह्माण्ड से परिचय कराया। 695 00:45:58,760 --> 00:46:02,560 धूलभरे अपारदर्शी बादल उत्तप्त हो अवरक्त प्रकाश देते हैं। 696 00:46:02,680 --> 00:46:04,560 697 00:46:04,600 --> 00:46:08,720 मन्दाकिनियों की टकराहट से उत्पन्न झंझावात धूल में वलयों 698 00:46:08,760 --> 00:46:13,480 की संरचना करते हैं जो नवतारों की जन्म स्थली बनते हैं। 699 00:46:15,520 --> 00:46:19,080 तारे की मृत्यु से भी धूल उत्पन्न होती है। 700 00:46:19,200 --> 00:46:23,080 स्पिट्ज़र ने पाया कि ग्रहरुपी नीहारिकाओं और सुपरनोवा अवशेषों में 701 00:46:23,200 --> 00:46:28,320 ऐसी धूलभरी भविष्य के ग्रहों की निर्माण स्थलियां हैं। 702 00:46:28,440 --> 00:46:32,080 दूसरी अवरक्त तरंगों पर कार्य कर स्पिट्ज़र ने 703 00:46:32,200 --> 00:46:37,720 बादलों के गर्भ में द्दिपे तारों को खोज निकाला। 704 00:46:37,840 --> 00:46:40,960 उसने गुरु जैसे दैत्याकार गैसीय ग्रह - जो अन्य दूसरे सौर मण्डलों में हैं - 705 00:46:40,960 --> 00:46:44,880 के वायुमण्डल का अध्ययन किया जो अपने तारे के गिर्द 706 00:46:44,920 --> 00:46:48,880 मात्र चन्द दिनों में परिक्रमा लगा लेते हैं। 707 00:46:50,680 --> 00:46:52,880 और एक्स तथा गामा किरणों का क्या? 708 00:46:52,920 --> 00:46:55,560 वे तो पृथ्वी के वायुमण्डल में पूरी तरह अवशोषित हो जाती हैं। 709 00:46:55,680 --> 00:46:59,160 अन्तरिक्ष दूरबीनों के बिना हम सदैव इन 710 00:46:59,200 --> 00:47:02,080 विकिरणों के प्रति अन्धे ही बने रहते। 711 00:47:03,680 --> 00:47:07,080 एक्स और गामा किरण दूरबीनों से उजागर होता है 712 00:47:07,120 --> 00:47:11,800 एक उत्तप्त, ऊर्जामय और विध्वन्सकारी ब्रह्माण्ड का स्वरूप जिसमें मन्दाकिनियों 713 00:47:11,840 --> 00:47:16,080 के गुच्छे हैं, ब्लैक होल हैं, सुपरनोवा विस्फोट और मन्दाकिनियों की टकराहट है। 714 00:47:18,760 --> 00:47:20,840 पर ऐसी दूरबीनें बनाना बड़ा कठिन है। 715 00:47:20,920 --> 00:47:24,440 ये विकिरण तो साधारण दर्पण को भेदता निकल जायेगा। 716 00:47:24,520 --> 00:47:29,680 एक्स किरणों को केन्द्रीभूत करने के लिये प्याज़ के छिलके जैसे सोने से बने दर्पणों का उपयोग होता है। 717 00:47:29,760 --> 00:47:33,120 और गामा किरणों के लिये विशेष प्रकार के सूचीछिद्र कैमरे अथवा 718 00:47:33,200 --> 00:47:36,560 उत्स्फुलिंगन गणकों के ढेर का प्रयोग किया जाता है। 719 00:47:36,640 --> 00:47:39,680 जब उनपर गामा किरण पड़ती है तो एक क्षणिक कौंध उत्पन्न होती है। 720 00:47:40,960 --> 00:47:45,120 नासा ने 1990 के दशक में कॉम्प्टन गामा रे आब्ज़र्वेटरी शुरू की। 721 00:47:45,200 --> 00:47:48,280 यह उस समय का सबसे बड़ा 722 00:47:48,360 --> 00:47:49,880 और भारी वैज्ञानिक उपग्रह था। 723 00:47:49,960 --> 00:47:53,120 मानो अन्तरिक्ष में विचरण करती पूरी की पूरी भौतिकी की प्रयोगशाला। 724 00:47:53,200 --> 00:47:56,480 वर्ष 2008 में कॉम्प्टन का उत्तराधिकारी बनी "ग्लास्ट" 725 00:47:56,560 --> 00:48:00,520 यानि गामा रे लार्ज एरिया स्पेस टैलिस्कोप। 726 00:48:00,600 --> 00:48:04,120 यह ब्रह्माण्ड में उच्च ऊर्जा के क्षेत्र में 727 00:48:04,200 --> 00:48:06,520 अन्ध पदार्थ से लेकर पल्सार तक सब कुछ देखेगी। 728 00:48:08,440 --> 00:48:12,360 इसी बीच खगोलशास्त्रियों के पास दो एक्स-रे दूरबीनें अन्तरिक्ष में हैं। 729 00:48:12,440 --> 00:48:17,400 एक है नासा की चन्द्रा एक्स-रे आब्ज़र्वेटरी और दूसरी ईएसए की एक्स-एम-एम-न्यूटन आब्ज़र्वेटरी। 730 00:48:17,480 --> 00:48:21,480 दोनों ब्रह्माण्ड के सबसे गर्म स्थलों के अध्ययन में सन्नद्ध हैं। 731 00:48:23,960 --> 00:48:27,680 एक्स-रे दृटि से आकाश कुछ ऐसा नज़र आता है। 732 00:48:27,760 --> 00:48:32,160 ये फैले हुये आकार सुपरनोवा अवशेषों में झंझावात 733 00:48:32,240 --> 00:48:35,680 तरंगों द्वारा गर्म हुये गैस के बादल हैं। 734 00:48:35,760 --> 00:48:39,960 चमकीली बिन्दुवत् रचनायें एक्स-रे युग्म तारे हैं - जिनका एक घटक 735 00:48:39,960 --> 00:48:43,640 न्यूट्रॉन तारा या ब्लैकहोल - दूसरे घटक के पदार्थ का भक्षण कर रहा है। 736 00:48:43,720 --> 00:48:47,280 गिरता पदार्थ गर्म हो एक्स किरणों का उत्सर्जन कर रहा है। 737 00:48:47,360 --> 00:48:51,560 एक्स-रे दूरबीनों ने दूरस्थ मन्दाकिनियों के केन्द्र में 738 00:48:51,640 --> 00:48:53,760 दैत्याकार संहति वाले ब्लैकहोलों को खोजा है। 739 00:48:53,840 --> 00:48:57,800 घूमता अन्दर की ओर घुमड़ता पदार्थ ब्लैकहोल में जाकर 740 00:48:57,880 --> 00:49:02,160 अदृश्य होने से पहले गर्म हो एक्स किरणें बिखेरने लगता है। 741 00:49:02,240 --> 00:49:06,840 मन्दाकिनियों के किसी ऐसे गुच्छे में गर्म 742 00:49:06,920 --> 00:49:08,320 किन्तु झीनी गैस विद्यमान रहती है। 743 00:49:08,400 --> 00:49:12,240 कभी-कभी टकराती, विलय होती मन्दाकिनियों के झंझावात 744 00:49:12,320 --> 00:49:16,480 इसे ओर गर्म कर देते हैं। 745 00:49:16,560 --> 00:49:20,760 इनसे भी रोचक हैं गामा किरण विस्फोट - 746 00:49:20,840 --> 00:49:22,600 ब्रह्माण्ड की सबसे ऊर्जावान घटनायें। 747 00:49:22,680 --> 00:49:26,920 तेज़ी से अपनी धुरी पर घूमते विराट संहति वाले 748 00:49:26,960 --> 00:49:28,760 तारों की मृत्यु के समय ये विस्फोट होते हैं। 749 00:49:28,840 --> 00:49:32,760 एक सेकिन्ड से भी कम समय में इनसे इतनी ऊर्जा मुक्त होती है 750 00:49:32,840 --> 00:49:35,760 जितनी सूर्य दस अरब वर्ष में दे। 751 00:49:38,200 --> 00:49:42,160 हबल, स्पिट्ज़र, चन्द्रा, एक्स-एम-एम-न्यूटन तथा ग्लास्ट 752 00:49:42,240 --> 00:49:44,600 सभी बहूपयोगी विराट उपकरण हैं। 753 00:49:44,680 --> 00:49:47,640 पर कुछ अन्तरिक्ष दूरबीनें छोटी तथा 754 00:49:47,720 --> 00:49:49,240 सीमित कार्य हेतु बनायीं जाती हैं। 755 00:49:49,320 --> 00:49:51,280 जैसे - कोरोट। 756 00:49:51,360 --> 00:49:54,880 फ्रांस में बने इस उपग्रह का कार्य है तारों के भूकम्पनों को नापना 757 00:49:54,960 --> 00:49:56,880 और दूसरे सौर मण्डलों के ग्रहों का अध्ययन करना। 758 00:49:56,960 --> 00:50:01,240 नासा का छोटा सा स्विफ्ट उपग्रह एक्स तथा गामा किरण दूरबीनें का मिश्रण है 759 00:50:01,320 --> 00:50:05,720 और काम है गामा रे विस्फोटों की पहेली सुलझाना। 760 00:50:05,800 --> 00:50:10,160 और ये है डब्ल्यू मैप या विल्किन्सन माइक्रोवेव एनाइसोट्रोपी प्रोब 761 00:50:10,240 --> 00:50:13,840 जिसने स्थापना के मात्र दो वर्षों में ही 762 00:50:13,920 --> 00:50:17,280 - कास्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउण्ड विकिरण का अत्यन्त सूक्ष्मता से अध्ययन कर डाला। 763 00:50:17,360 --> 00:50:21,200 डब्ल्यू मैप से ब्रह्माण्डिकीविदों को ब्रह्माण्ड के आरम्भिक की 764 00:50:21,280 --> 00:50:26,680 अबतक सबसे अच्छी जानकारी मिली - 13 अरब वर्ष पुराना इतिहास। 765 00:50:26,760 --> 00:50:29,640 अंतरिक्ष की सीमा लांघ पाना शायद दूरबीन के इतिहास की 766 00:50:29,720 --> 00:50:32,240 सबसे प्रमुख और रोचक घटना रही। 767 00:50:32,320 --> 00:50:34,760 क्या होगा अगला कदम? 768 00:50:37,800 --> 00:50:40,680 7. क्या है अगला कदम? 769 00:50:42,680 --> 00:50:45,480 एरिज़ोना में जायेंट मैजेलन टेलेस्कोप का 770 00:50:45,560 --> 00:50:47,400 पहला विशाल दर्पण ढाल लिया गया है। 771 00:50:47,480 --> 00:50:50,680 इस विराट दूरबीन को चिली की 772 00:50:50,760 --> 00:50:52,360 लास कैम्पानास वेधशाला में लगाया जायेगा। 773 00:50:52,440 --> 00:50:56,040 इसके सात दर्पणों में प्रत्येक का व्यास 8 मीटर होगा 774 00:50:56,120 --> 00:50:59,200 और ये एक फूल की पंखुड़ियों की भांति आयोजित रहेंगे। 775 00:50:59,280 --> 00:51:02,200 इनसे एकत्र हो रहा कुल प्रकाश अब तक की विशाल दूरबीनों 776 00:51:02,280 --> 00:51:05,799 की तुलना में चार गुने से ज्यादा होगा। 777 00:51:05,880 --> 00:51:10,240 सन् 2015 में कैक दूरबीन का एक दैत्याकार स्वरुप 778 00:51:10,320 --> 00:51:13,080 कैलिफोर्निया में स्थापित होगा 30 मीटर की दूरबीन के रुप में। 779 00:51:13,160 --> 00:51:16,360 इसके सैकड़ों छोटे घटक मिलकर एक छः मंजिला इमारत 780 00:51:16,440 --> 00:51:20,520 जितने बड़े दर्पण की रचना करेंगे। 781 00:51:20,600 --> 00:51:25,320 यूरोप में 42 मीटर व्यास की अति विराट दूरबीन 782 00:51:25,799 --> 00:51:29,160 की योजना शूरु हो चूकी है। 783 00:51:29,240 --> 00:51:32,640 ओलिम्पिक तरणताल जितने विशाल इसके दर्पण का क्षेत्रफल 784 00:51:32,720 --> 00:51:34,840 - 30 मीटर की दूरबीन की तुलना में दो गुना होगा। 785 00:51:34,920 --> 00:51:39,400 भविष्य के ये दैत्य अवरक्त प्रकाश में अध्ययन के लिये उपकरणों से 786 00:51:39,480 --> 00:51:44,160 सुसज्जित होंगे और एडैप्टिव आप्टिक्स पर आधारित होंगे। 787 00:51:44,240 --> 00:51:46,840 आशा है ये हमें वे मन्दाकिनियाँ दिखा पायेंगी 788 00:51:46,920 --> 00:51:50,120 जो ब्रह्माण्ड में सर्वप्रथम बनीं थीं। 789 00:51:50,200 --> 00:51:53,120 शायद इनसे प्रथम बार हम किसी अन्य 790 00:51:53,200 --> 00:51:56,160 सौरमण्डल के ग्रह को साफ-साफ देख पायें। 791 00:51:56,240 --> 00:52:00,000 रेडियो खगोलशास्त्रियों के लिये 42 मीटर का आकार तो राई के दाने जितना हुआ। 792 00:52:00,080 --> 00:52:02,720 वे छोटी छोटी दूरबीनों के 793 00:52:02,799 --> 00:52:05,080 संश्लेषण से बड़ी दूरबीन बना लेते हैं। 794 00:52:05,160 --> 00:52:08,799 नीदरलैण्डस् में लोफार - यानि - "लो फ्रीक्वैन्सी एरे" 795 00:52:08,880 --> 00:52:10,520 का निर्माण शुरु हुआ है। 796 00:52:10,600 --> 00:52:15,840 फाइबर-आप्टिक्स इसके 30 हजार एण्टेनाओं को एक सुपर कम्पूटर से जोड़ेगी। 797 00:52:15,920 --> 00:52:19,440 इसकी अद्भुत बनावट में कोई हिलने डुलनेवाले भाग नहीं हैँ। 798 00:52:19,520 --> 00:52:22,840 फिर भी यह आठ भिन्न दिशाओं मे एक साथ देख सकेगी। 799 00:52:22,920 --> 00:52:26,120 लोफार तकनीक अन्ततः वर्ग किलोमीटर एरे 800 00:52:26,200 --> 00:52:28,600 का मार्ग प्रशस्त करेगी 801 00:52:28,680 --> 00:52:30,560 जो रेडियो खगोलशास्त्रियों की प्रथम कामना है। 802 00:52:30,640 --> 00:52:34,640 इस अंतर्राष्ट्रीय दूरबीन का निर्माण आस्ट्रेलिया अथवा दक्षिणी अफ्रीका में होगा। 803 00:52:34,720 --> 00:52:38,560 विशाल थालियों जैसे इसके एण्टेने और छोटे ग्राहक उपकरण 804 00:52:38,640 --> 00:52:42,920 मिलकर रेडियो आकाश के अलभ्य विस्तृत दृश्य दिखलायेंगे। 805 00:52:43,000 --> 00:52:46,720 और एक वर्ग किलोमीटर के ग्रहण क्षेत्रफल 806 00:52:46,799 --> 00:52:50,440 के कारण ये अब तक बनी सबसे 807 00:52:50,520 --> 00:52:52,920 सुग्राही रेडियो दूरबीन होगी। 808 00:52:53,000 --> 00:52:58,040 चाहे नयी बन रहीं मन्दाकिनियाँ हों, टिमटिमाते पल्सार, 809 00:52:58,160 --> 00:53:01,799 रेडियो विकिरण उत्सर्जन कर रहा कोई भी स्रोत 810 00:53:01,880 --> 00:53:04,760 वो इतनी पैनी आँखों से बच न पायेगा। 811 00:53:04,799 --> 00:53:08,280 शायद इस उपकरण से धरातीत सभ्यताओं 812 00:53:08,360 --> 00:53:11,840 के रेडियो संकेत भी खोजे जायें। 813 00:53:11,920 --> 00:53:15,160 और हाँ, अंतरिक्ष दूरबीनें? 814 00:53:15,240 --> 00:53:19,040 पाँचवें और अन्तिम मरम्मत अभियान के बाद 815 00:53:19,120 --> 00:53:24,480 हबल अंतरिक्ष दूरबीन सन् 2013 तक कार्यरत रह सकेगी। 816 00:53:24,560 --> 00:53:28,720 उसी दौरान इसके उत्तराधिकारी का प्रक्षेपण होगा। 817 00:53:30,760 --> 00:53:34,720 मिलिये जेम्स वैब स्पेस टैलेस्कोप से - एक अवरक्त प्रकाश वेधशाला 818 00:53:34,799 --> 00:53:40,480 जिसका नामकरण नासा के एक पूर्व प्रशासक के नाम पर किया गया है। 819 00:53:40,560 --> 00:53:44,840 जब यह अन्तरिक्ष में होगी इसका 6.5 मीटर व्यास का खंडों 820 00:53:44,920 --> 00:53:48,480 में बँटा दर्पण एक फूल की तरह जा खिलेगा 821 00:53:48,560 --> 00:53:51,360 और ये हबल से सात गुना शक्तिशाली होगी। 822 00:53:51,440 --> 00:53:54,520 एक विशाल छतरी इस पर लगातार छाया रखेगी 823 00:53:54,600 --> 00:53:57,960 ताकि इसके उपकरण शून्य से 233 अंश सेल्सियस 824 00:53:58,040 --> 00:54:03,000 नीचे का तापमान बनाये रख सकें। 825 00:54:04,200 --> 00:54:07,880 ये दूरबीन पृथ्वी की नहीं बल्कि 826 00:54:07,960 --> 00:54:11,640 हमसे 15 लाख किलोमीटर दूर 827 00:54:11,720 --> 00:54:15,880 सूर्य की कक्षा में स्थापित होगी। 828 00:54:15,960 --> 00:54:19,080 आधी सदी पहले पैलोमर स्थित हेल दूरबीन 829 00:54:19,160 --> 00:54:20,960 इतिहास की सबसे बड़ी दूरबीन थी। 830 00:54:21,000 --> 00:54:25,120 पर आज की यह और भी बड़ी दूरबीन विराट गहन अन्तरिक्ष में विचरण करेगी। 831 00:54:25,160 --> 00:54:29,440 हम केवल़ अभी कल्पना ही कर सकते हैं कि कौन से अजूबे ये दिखायेगी। 832 00:54:29,520 --> 00:54:31,680 बस प्रतीक्षा कीजिये। 833 00:54:32,160 --> 00:54:34,880 धुन के धनी अभियन्ता लगातार नित नयी 834 00:54:34,960 --> 00:54:37,720 क्रान्तिकारी दूरबीनों की परिकल्पना में लगे रहेंगे। 835 00:54:37,799 --> 00:54:42,040 कनाडा के वैज्ञानिकों ने तथाकथित द्रवीय-दर्पण-दूरबीन बना ली है। 836 00:54:42,120 --> 00:54:45,200 इसमें तारे का प्रकाश ठोस दर्पण के बजाय 837 00:54:45,280 --> 00:54:49,360 एक घूमते हुये पात्र में रखे पारे के 838 00:54:49,440 --> 00:54:52,600 वक्र तल से परावर्तित होता है। 839 00:54:52,680 --> 00:54:56,360 पर अपनी बनावट के कारण ऐसी दूरबीन बस सीधा ऊर्ध्वाधर ही देख सकती है। 840 00:54:56,440 --> 00:54:59,120 पर इसका निर्माण सरल 841 00:54:59,200 --> 00:55:01,360 और ये सस्ती होती है। 842 00:55:01,440 --> 00:55:04,440 उधर रेडियो खगोलशास्त्रियों की कामना है कि वे लोफार 843 00:55:04,520 --> 00:55:07,360 जैसा किन्तु छोटा एण्टेनाओं का जाल 844 00:55:07,440 --> 00:55:10,880 धरती की रेडियो बाधाओं से दूर चन्द्रमा पर लगायें। 845 00:55:10,960 --> 00:55:13,520 कौन जानता है कि एक दिन चन्द्रमा के पिछले पृष्ठ एक 846 00:55:13,600 --> 00:55:16,360 सामान्य प्रकाश वाली बड़ी दूरबीन लगायी जाय। 847 00:55:16,440 --> 00:55:19,360 एक्स-रे खगोलशास्त्रियों को आशा है 848 00:55:19,440 --> 00:55:21,960 कि वे भविष्य में अंतरिक्ष में उपगूहन चकतियां लगा 849 00:55:22,040 --> 00:55:23,040 अपनी दृष्टि और भी तेज़ कर लेंगे। 850 00:55:23,120 --> 00:55:25,720 शायद वे किसी ब्लैकहोल की 851 00:55:25,799 --> 00:55:27,760 बाहरी धार भी देख लें। 852 00:55:29,560 --> 00:55:32,560 एक दिन दूरबीन ही उस सनातन प्रश्न का उत्तर हमें दिलायेगी 853 00:55:32,640 --> 00:55:38,840 कि क्या हम ब्रह्माण्ड में नितान्त अकेले हैं? 854 00:55:42,480 --> 00:55:45,800 हमें पता है बाहर दूसरे और सौर-मण्डल हैं। 855 00:55:45,920 --> 00:55:48,280 ये भी अनुमान है कि वहाँ पृथ्वी जैसे ग्रह हो सकते हैं। 856 00:55:48,400 --> 00:55:50,200 शायद पानी से परिपूर्ण। 857 00:55:50,320 --> 00:55:51,200 पर 858 00:55:51,320 --> 00:55:53,440 क्या वहाँ जीवन है? 859 00:55:54,320 --> 00:55:58,120 ऐसे धरातीत ग्रहों की खोज करना कठिन कार्य है। 860 00:55:58,240 --> 00:56:00,680 मुख्य तारे के तेज़ प्रकाश में 861 00:56:00,720 --> 00:56:03,960 ये ग्रह नहीं देखे जा सकते। 862 00:56:04,920 --> 00:56:08,040 अंधियारे अंतरिक्ष में स्थापित व्यतिकरणमापी यंत्र 863 00:56:08,160 --> 00:56:10,760 भविष्य में इसका हल शायद दे सकेंगे। 864 00:56:10,799 --> 00:56:13,520 इस समय नासा एक नयी योजना - 865 00:56:13,560 --> 00:56:16,120 टैरेस्ट्रियल प्लैनेट फाइण्डर - पर कार्य कर रहा है। 866 00:56:16,240 --> 00:56:20,680 और यूरोप के वैज्ञानिक सोच रहे हैं डारविन एरे के बारे में। 867 00:56:20,799 --> 00:56:24,360 छः अलग-अलग अन्तरिक्ष दूरबीनें जो क्रमबद्ध सूर्य की परिक्रमा करेंगी। 868 00:56:24,480 --> 00:56:28,520 लेज़र प्रकाश की सहायता से इनकी परस्पर दूरी को नैनोमीटर की शुद्धता से रखा जायेगा। 869 00:56:28,560 --> 00:56:32,200 संयुक्त रूप से इनकी 870 00:56:32,240 --> 00:56:36,040 इतनी विश्लेषण शक्ति होगी कि 871 00:56:36,160 --> 00:56:39,800 तारों के गिर्द घूमते पृथ्वी जैसे ग्रह स्पष्ट दिखायी दें। 872 00:56:40,640 --> 00:56:44,880 खगोलशास्त्री निश्चय ही अगले क्रम में ग्रह से परावर्तित प्रकाश को पढ़ेंगे। 873 00:56:45,000 --> 00:56:49,960 उसका वर्णक्रम ग्रह के वायुमण्डल का परिचायक होगा। 874 00:56:50,000 --> 00:56:53,280 हो सकता है अगले 15 वर्ष में हम वहां 875 00:56:53,320 --> 00:56:55,600 आक्सीजन, मीथेन और ओज़ोन की उपस्थिति का पता लगा लें। 876 00:56:55,720 --> 00:56:58,800 ये हैं जीवन के चिह्न। 877 00:57:01,000 --> 00:57:03,520 ब्रह्माण्ड आश्चर्यों से भरा पड़ा है। 878 00:57:03,640 --> 00:57:05,960 आकाश हमें सदैव पुकारते रहता है। 879 00:57:06,080 --> 00:57:08,960 इसीलिये विश्व में लाखों शौकिया लोग 880 00:57:09,000 --> 00:57:11,520 प्रति निर्मल रात अपनी दूरबीनें लेकर 881 00:57:11,640 --> 00:57:13,200 उसे निहारने निकल पड़ते हैं। 882 00:57:13,240 --> 00:57:15,520 उनकी दूरबीनें गैलीलियो के मुकाबले 883 00:57:15,640 --> 00:57:16,960 कहीं अधिक शक्तिशाली हैं। 884 00:57:17,000 --> 00:57:20,600 उनके डिजिटल चित्र कुछ दशक पहले 885 00:57:20,640 --> 00:57:23,760 के पेशेवर खगोलशास्त्रियों के चित्रों को मात देते हैं। 886 00:57:23,880 --> 00:57:27,200 इस ब्रह्माण्डिकी अन्वेषण का दूरबीन वाला 887 00:57:27,240 --> 00:57:30,760 दौर बस 400 साल पुराना है। 888 00:57:30,799 --> 00:57:35,040 अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है। 889 00:57:35,560 --> 00:57:38,880 गैलीलियो ने चार सदी पहले जो कार्य शुरू किया था 890 00:57:39,000 --> 00:57:42,200 उसमें हम बहुत आगे निकल आये हैं। 891 00:57:42,240 --> 00:57:45,440 आज भी हम ब्रह्माण्ड को दूरबीनों से खंगालते हैं। 892 00:57:45,480 --> 00:57:50,800 और पृथ्वी की सीमा हमने पार कर ली हैं। 893 00:57:50,920 --> 00:57:54,520 मानवता का सार यही है 894 00:57:54,640 --> 00:57:57,680 - विपुल अन्तर्दृष्टि और जानने की अभिलाषा। 895 00:57:57,799 --> 00:58:00,360 हमने कुछ महान सनातन प्रश्नों के उत्तर 896 00:58:00,400 --> 00:58:02,440 खोजने बस आरम्भ ही किये हैं। 897 00:58:02,480 --> 00:58:05,120 अब तक हमने अपनी आकाशगंगा में 898 00:58:05,160 --> 00:58:09,200 दूसरे तारों के गिर्द 300 से अधिक ग्रह खोज लिये हैं 899 00:58:09,240 --> 00:58:12,760 और कुछ कार्बनिक यौगिकों की उपस्थिति भी। 900 00:58:12,799 --> 00:58:17,440 शायद ऐसा लगे मानो हमने खोज का शिखर छूँ लिया हो। 901 00:58:17,520 --> 00:58:21,520 पर इससे और बेहतर आना अभी बाकी है। 902 00:58:21,640 --> 00:58:24,440 आप भी इस अभियान में जुड़ सकते हैं। 903 00:58:24,480 --> 00:58:29,200 बस ऊपर जो है उसे विस्मय भरी आँखोँ से निहारिये।